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४३०. पत्र : कमरुद्दीन ऐंड कम्पनीको

[जोहानिसबर्ग]
जून २६, १९०५

सेवामें
श्री एम॰ सी॰ कमरुद्दीन ऐंड कं॰
पो॰ ऑ॰ बॉ॰ १२६
डर्बन
प्रिय महोदय,

क्या आप कृपा करके मैं इस तथ्यको समझ उन्होंने उसमें लिखा है श्री डानककी मृत्युका समाचार पाकर मुझे अत्यन्त दुःख हुआ। उनके माता-पिताको उनके इस शोकमें मेरी सहानुभूति पहुँचा देंगे? नहीं सकता। आपके पत्रके साथ उनका भी एक पत्र मेरे सामने है। कि उनका काम अच्छी तरह चल रहा है।

जब मैं वहाँ दादा अब्दुल्लाके कामकाजके सम्बन्धमें जाऊँगा तब यदि मेरे साथ श्री अब्दुल गनी चलें तो मुझे बहुत सुविधा होगी।

आपका विश्वासपात्र,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ४३३।

४३१. पत्र : अब्दुल हक और कैखुसरूको

[जोहानिसबर्ग]
जून २७, १९०५

श्री अब्दुल हक व कैखुसरू
श्री ५ भाई अब्दुल हक तथा कैखुसरू,

आप दोनोंके खिलाफ शिकायत आई है कि आप रविवारका बहुत-सा वक्त पत्ते खेलने में गँवा देते हैं, लोगों को जवाब वगैरा देनेमें पूरी तरह विनययुक्त व्यवहार नहीं करते और सेठका काम जितनी चिंतासे देखना चाहिए उतनी चिंतासे नहीं देखते। मैं इसके बहुतसे अंशपर विश्वास नहीं करता। आपको पत्तोंका शौक हो तो मैं खुद उसपर रोक नहीं लगाना चाहता। आप सेठका काम अच्छी तरह करते हैं, मैं ऐसा मानता हूँ। आपमें विनय नहीं है, यह बात मेरे गले नहीं उतरती। फिर भी जो मेरे कानोंमें आया है उसे अपने मनमें रख छोड़नेके बजाय आपको बताना ठीक समझता हूँ। पत्ते खेलते हों तो उसकी अपेक्षा अपने अवकाशके समयका उपयोग बाहर हवा खानेमें अथवा अच्छी पुस्तकें पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ानेमें करें तो बहुत अच्छा हो। पत्ते खेलने ही हों तो उसमें थोड़ा ही समय लगायें। आप रुस्तमजी सेठका स्वभाव जानते हैं। उन्हें पत्ते बिलकुल पसन्द नहीं हैं। अगर खेलते हों तो उनका मान रखनेके विचारसे भी बिलकुल बन्द करना ठीक है।