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४४. पत्र : दादाभाई नौरोजीको
ब्रिटिश भारतीय संघ


२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
रिसिक स्टीट
जोहानिसबर्ग
नवम्बर २३, १९०३


सेवामें

माननीय दादाभाई नौरोजी,
वाशिंगटन हाऊस,
७२, एनर्ले पार्क,

लंदन, एस॰ ई॰, इंग्लैंड

प्रिय महोदय,

मैंने गत सप्ताह[१] ट्रान्सवालके भारतीय व्यापारियोंकी स्थितिके सम्बन्धमें आपको लिखा था और सुझाया था कि संभव हो तो श्री ब्रॉड्रिक या श्री लिटिलटनसे निजी मुलाकात मांगी जाये। इस मामले में जितना सोचता हूँ उतना ही मुझे विश्वास होता है कि ऐसी कोई कार्रवाई करना नितान्त आवश्यक है। इस मुलाकातमें बातचीत केवल अत्यावश्यक प्रश्न—अर्थात्, वर्तमान परवानेदारोंके अधिकारोंतक सीमित रखी जाये। इंडियन ओपिनियनके इसी अंकमें आप बाजारोंके लिए प्रस्तावित स्थानोंके बारेमें जिम्मेदार लोगोंके प्रतिवेदन देखेंगे। अधिकांश मामलोंमें सरकारने उत्तर दिया है कि ये प्रतिवेदन गलत हैं और यह कि सम्बन्धित शहरोंमें केवल ये ही स्थान उपलब्ध हैं। मुझे पूर्ण विनम्रतासे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि ये स्थान व्यापारके लिए बिलकुल बेकार है और, सच कहा जाये तो, सरकार इस विषयमें विवादमें नहीं पड़ना चाहती, बल्कि इस तर्कका आश्रय लेती है कि, कोई अन्य स्थान उपलब्ध ही नहीं है। कुछ भी हो, जो इस समय बस्तियोंके बाहर व्यापार कर रहे हैं, उनके लिए वहाँ हटाये जानेका बिलकुल प्रश्न ही नहीं उठना चाहिए। मैं लॉर्ड मिलनरके खरीतेको चर्चा कर ही चुका हूँ। उससे प्रकट हो जायेगा कि कमसे-कम उन्होंने इन लोगोंको, जो शरणार्थी हैं, हटानेकी कभी कल्पना न की थी। श्री चेम्बरलेनने गत जनवरीमें शिष्टमण्डलको जो वचन दिया था, उसका आशय भी यही है। ब्रिटिश भारतीयोंके सामान्य दर्जे के प्रश्नके अतिरिक्त मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि उपनिवेश-कार्यालय और भारत-कार्यालय पर्याप्त दबाव डालें तो इन गरीब लोगोंको न्याय मिलनेकी पूरी संभावना है।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी॰ एन॰ २२५८ ) से।

  1. देखिए "टिप्पणियाँ," नवम्बर १६, १९०३।