उन्हींके पास भेजे जाने चाहिए, सीधे अलग-अलग लोगोंको नहीं। करसनदासको 'इंडियन ओपिनियन' की एक प्रति रानावाव निःशुल्क भेज दिया करो।
मोहनदासके आशीर्वाद
मूल अंग्रेजीकी फोटो-नकल (एस० एन० ४२५३) से।
९७. ट्रान्सवालमें कानून बनानेकी सरगरमी
यद्यपि ट्रान्सवालके महान्यायवादी सर रिचर्ड सॉलोमनने कहा था कि ट्रान्सवालकी विधान- परिषदके चालू अधिवेशनमें कोई विवादास्पद कानून पेश नहीं किया जायेगा, तथापि 'गवर्नमेंट गजट 'के ताजे अंकमें कई अध्यादेशोंकी एक सूची प्रकाशित हुई है। ये अध्यादेश समाप्तप्राय परिषद द्वारा पास किये गये हैं। अगर उन लोगोंकी भावनाएं कुछ भी महत्त्व रखती हों, जिनपर उनका असर पड़ेगा तो कहना होगा, इनमें से कुछ निस्सन्देह अत्यन्त विवादास्पद है। उदाहरणार्थ, उनमें एक नगरपालिका-कानून संशोधन अध्यादेश है, जिसके द्वारा ट्रान्सवालकी किसी भी नगर-परिषदको यह अधिकार मिलता है कि वह चाहे तो "लेफ्टिनेंट गवर्नरकी स्वीकृतिसे वतनी लोगोंकी ऐसी किसी भी बस्तीको, जिसको उसने बसाया है, या जिसकी नियोजना की है, अथवा जो उसके नियन्त्रणमें है, उठा दे"। हाँ, लेफ्टिनेंट गवर्नर बस्तीको उठानेकी स्वीकृति देनेसे पहले परिषदको उसके लिए उपयुक्त अन्य जमीनका प्रबन्ध करनेका आदेश दे सकता है। इसमें वतनी लोगोंको उनकी झोंपड़ियों आदिका मुआवजा देनेकी व्यवस्था भी की गई है। खण्ड १० में नगर परिषदको पृथक एशियाई बाजार' स्थापित करने और कायम रखनेका अधिकार दिया गया है। और उसमें वतनी बस्तियोंसे सम्बन्धित उक्त व्यवस्था एशियाई बाजारोंपर लागू करनेका विधान भी है। इसका अभिप्राय यह है कि दोनोंमें अंतर केवल इतना रहेगा कि वतनी लोग वस्तियोंमें रहनेके लिए बाध्य किये जा सकेंगे, परन्तु एशियाई सम्भवतः उनमें जानेके लिए विवश नहीं किये जा सकेंगे, जिन्हें 'बाजारों' का नरम नाम दिया गया है। एशियाई 'बाजार'- सम्बन्धी यह कानून प्रिटोरिया नगरपालिकाके उस संघर्षका परिणाम है जो उसने प्रिटोरियाके एशियाई बाजारको अपने नियन्त्रणमें लेनेके लिए किया था। सिद्धान्तकी दृष्टिसे चाहे सरकारके और नगरपालिकाके नियन्त्रणमें कोई अंतर न हो, परन्तु व्यवहारमें जिस नगरपालिकाका अधिकार होगा उसके मिजाजपर बहुत-कुछ निर्भर कर सकता है। इसलिए 'बाजारों के सम्बन्ध नीति एक-सी होनेके बजाय, प्रत्येक नगरपालिकाकी मर्जीके अनुसार भिन्न होगी। यह समझना बड़ा कठिन है कि सारे एशियाई प्रश्नपर ब्रिटिश सरकार और ट्रान्सवाल सरकारमें पत्र-व्यवहार चालू होनेपर भी, वर्तमान परिषदने अपने अन्तिम दिनोंमें इस प्रकारका कानून क्यों पास किया। अन्य बहुतसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक मामले स्वभावत: इसी कारण रोक लिये गये हैं कि अगले वर्ष निर्वाचित परिषदकी स्थापना होगी ही। संशोधित अध्यादेशोंमें नगरपालिकाओंको
१. गांधीजीके भाई ।
२. पोरबन्दरके पास एक गाँव।