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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१४७

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भूल-सुधार

यह बम्बईसे आता है तब भी इसकी बोरी-बन्दी कलकत्ते में ही की जाती है। भारत सरकारपर यह एक गम्भीर आरोप है कि बम्बईमें उस चावलका निर्यात रोकनेके लिए कोई विशेष सावधानी नहीं बरती गई, जिसमें शायद छूत थी। जिन्हें भारतमें यात्रा करनेकी कुछ भी जानकारी है वे जानते हैं कि बम्बईमें कितनी कड़ी सावधानी बरती जाती है। इसलिए डॉ० पेक्सने जो निष्कर्ष निकाले हैं उनपर पहुँचानेवाले सभी महत्त्वपूर्ण तर्क, हमारी सम्मतिमें, सत्य सिद्ध नहीं किये जा सकते। फिर, चावलका आयात तो भारतीय पहले भी किया करते थे, उसके बावजूद जोहानिसबर्ग प्लेगसे कैसे बचा रहा? क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि जोहानिसबर्गमें चावलका आयात पहले-पहल १९०४ में हुआ था। यह शायद कभी भी ज्ञात नहीं होगा कि इस महामारीके फैलनेका वास्तविक कारण क्या था, और जबतक यह ज्ञात नहीं होगा तबतक इसे फैलनेसे रोकनेके उपाय भी असफल होते रहेंगे। हम यह नहीं कहते कि जोहानिसबर्गमें प्लेग फिर फैल जायेगा। जोहानिसबर्ग इतनी ऊँचाईपर बसा है कि वहाँ, अत्यन्त गम्भीर परिस्थितियाँ उत्पन्न हुए बिना, प्लेगका फैलना अति कठिन है। डॉ० पेक्स साधारणतया निष्पक्ष हैं; परन्तु भारतीयोंने अधिकारियोंको सन्दिग्ध मामलोंकी सारी सूचना और बस्तीका प्रबन्ध नगरपालिकाके हाथमें आनेके बाद उसकी अवस्थाके विषयमें उन्हें चेतावनी देकर रोगको फैलनेसे रोकनेका जो भगीरथ प्रयत्न किया था उसकी सर्वथा उपेक्षा करके, डॉ० पेक्सने भारतीयोंके साथ न्याय नहीं किया। हमें लगता है कि उन्होंने भारतीय बस्तीकी उस समयकी स्थितिके विषयमें अस्वच्छ क्षेत्र-आयोगके सामने दी हुई डॉ० पोर्टरकी गवाहीके अंश उद्धृत करके, असली बातको टाल दिया है। रोगको नष्ट करनेके लिए जो उपाय किये गये थे उन सबका वर्णन इस रिपोर्ट में ठीक-ठीक किया गया है, और उनसे योग्य डॉक्टर तथा उनके सहायकोंको बहुत अधिक श्रेय मिलता है। बस्ती और जोहानिसबर्ग मार्केटको जिस प्रकार सँभाला गया था वह भारी प्रशंसाके योग्य है, और निःसंदेह डॉ० पेक्स तथा उनके योग्य सहायक डॉ० मैकेंजी द्वारा की गई सरगर्म कार्रवाइयोंकी बदौलत ही रोग इतने शीघ्र उन्मलित हो गया ।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१२८. भूल-सुधार

'पाँचेफस्ट्रम बजट'ने लॉर्ड सेल्बोर्नके उस भाषणपर दी गई हमारी टिप्पणीपर अपना विचार प्रकट किया है जिसमें उन्होंने अपने पदकी हैसियतसे वचन दिया था कि ट्रान्सवालमें जबतक प्रातिनिधिक शासन कायम नहीं हो जाता तबतक, जो युद्धसे पहले यहाँ मौजूद थे उनके सिवा अन्य भारतीयोंको यहाँ प्रविष्ट नहीं होने दिया जायेगा। हमारा सहयोगी लिखता है:

यह 'शिकायतों का एक नया चरण है, और स्पष्ट है कि एक ऐसी नीतिका सूत्रपात है जिसके कारण, यहाँ पहलेसे बसे हुए भारतीयोंके साथ गोरी आबादीका नरम-वर्ग जो सहानुभूति प्रकट करला आ रहा है वह नष्ट हो जायेगी। यदि वे समझदार है, तो स्वयं अपने लाभके लिए, हमें यह मानने के लिए विवश करने से बाज रहेंगे कि उनका अन्तिम लक्ष्य ट्रान्सवालमें हजारों भारतीय प्रजाजनोंको भर देना है। 'इंडियन ओपिनियन' बकवास करता है कि एक-एक भारतीयको इस उपनिवेशसे निकाल बाहर करनेका प्रयत्न किया