हम सर आर्थर लालीको, उनके मद्रासका गवर्नर नियुक्त होनेपर बधाई देते हैं। परमश्रेष्ठ इस सम्मानके सर्वथा अधिकारी हैं। सर आर्थर सदा दयालु और शिष्ट व्यक्ति हैं, और जिन लोगोंका हिताहित उनके सुपुर्द किया जाता है उनकी भलाईका सदा खयाल रखते हैं। भार- तीयोंके विषयमें उनके विचार विचित्र हैं; और उन्होंने इस प्रश्नपर विचार करते समय जो गलतियाँ' की हैं, उनकी हमें अक्सर आलोचना करनी पड़ती है। परन्तु हमारा सदा यह विश्वास रहा है कि उनके विचार ईमानदारीसे वैसे थे। फिर सर आर्थरका विश्वास था-- यद्यपि हमारा खयाल है कि वह गलत था-- कि वे ट्रान्सवालवासी यूरोपीयोंकी सेवा भारतीय-विरोधी नीति- पर चलकर अधिक कर सकेंगे। उनके ऐसे विचार रखनेका कारण यह था कि उनके हृदयमें ट्रान्सवालवासी यूरोपीयोंकी सेवा करनेकी इच्छा बहुत तीव्र थी। उनकी यही इच्छा मद्रासमें उनके बलका कारण हो सकती है, क्योंकि अब उनकी दयालुता, शिष्टता, सहानुभूति और चिन्ता उन करोड़ों भारतीयोंके प्रति परिवर्तित हो जायेगी जिनके वे अगले पांच वर्षोंके लिए भाग्य- विधाता बने हैं। सर आर्थर लाली लॉर्ड ऐम्टहिल द्वारा रिक्त किये गये स्थानको ग्रहण कर रहे हैं। वे मद्रासकी जनतामें लोकप्रिय हो चुके थे। हमें आशा है कि सर आर्थर उत्तराधिकारमें प्राप्त उन परम्पराओंको जारी रखेंगे।
१६४. भारतीय स्वयं-सैनिक
हमें यह देखकर प्रसन्नता कि भारतीयोंको स्वयं-सैनिक बनानेके विषयमें हमने जो टिप्पणी लिखी थी उसका 'नेटाल विटनेस' ने उत्साहके साथ समर्थन किया है और उसमें इस विषयपर कुछ पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। हमें लगता है कि अब इस मामलेको समाचार- पत्रोंने अपना लिया है और इसको तबतक समाप्त नहीं होने दिया जायेगा जबतक सरकार अपनी नीतिके बारेमें अपनी सम्मति नहीं प्रगट कर देगी। १८७५ का कानून २५ विशेष रूपसे इसीलिये बनाया गया था कि "प्रवासी भारतीयोंका एक पैदल स्वयं-सैनिक दल जोड़कर उपनिवेशके स्वयं-सैनिक दलका बल अधिकतम बढ़ा दिया जाये। इस कानूनके अनुसार गवर्नरको यह अधिकार प्राप्त है कि "जो प्रवासी भारतीय स्वेच्छासे स्वयं-सैनिक दलमें भरती होना चाहें, उन्हें वे उनके मालिककी अनुमतिसे भरती कर लें।" उन दिनों उस दलकी शक्ति एक हजार तीन सौ जवानों तक सीमित रखी गई थी। खेतों या बागानका कोई भी मालिक ऐसी सेना संगठित कर सकता था और गवर्नरकी अनुमतिसे उसका कप्तान नियुक्त हो सकता था। प्रत्येक कुशल स्वयंसेवकके लिए बीस शिलिंग प्रति व्यक्तिके हिसाबसे अनुदान नियत किया गया था,
१. देखिए "कुछ और बातें : सर आर्थरलालीके खरीतेके विषयमें", खण्ड ४, पृष्ठ २८६ तथा “सर आर्थर लाली और ब्रिटिश भारतीय", पृष्ठ ४५६-७।
२. देखिए "भारतीय स्वयंसेवक-दल", पृष्ठ १४०।