और ऐसे किसी भी स्वयंसेवकको
कुशल नहीं माना जायगा, जो प्रतिवर्ष बारह दिन तक प्रतिदिन चार घंटे के हिसाबसे अथवा चौबीस दिन तक प्रतिदिन दो घंटे के हिसाबसे अथवा अड़तालीस दिन तक प्रतिदिन एक घंटके हिसाबसे कवायद न कर चुका हो; और एक घंटेसे कमको किसी भी कवायदकी गिनती नहीं की जायेगी।
प्रवासी भारतीयोंके स्वयं-सैनिकदलका जो सदस्य वास्तविक सैनिक-सेवा करते हुए घायल होगा अथवा अन्य प्रकारसे गम्भीर चोट खा जायेगा उसे मुआवजा देनेका, और जो स्वयंसेवक मैदानमें लड़ते हुए अथवा लड़ाईमें लगे हुए घावोंके कारण मर जायेगा उसके नेटालमें पीछे छूटे हुए बाल-बच्चोंको पेंशन देनेका विधान भी किया गया था। इस प्रकार, यदि सरकार इच्छा-भर करे कि प्रवासी भारतीय उपनिवेशकी प्रतिरक्षामें भाग लें, जिसके लिए कि वे अबसे पहले अपनी तत्परता प्रकट कर चुके हैं, तो उसके लिए कानूनकी व्यवस्था पहलेसे विद्यमान है।
१६५. डर्बन निगमके भारतीय कर्मचारी
हमने सुना है कि नगर-निगमके भारतीय कर्मचारियोंका वेतन प्रतिमास दो शिलिंगके हिसाबसे घटा दिया गया है। यदि यह खबर सही हो तो बहुत खेदजनक है। ऐसा क्यों होता है, यह समझमें नहीं आता। इसके अतिरिक्त यह भी सुना है कि गोरोंका वेतन उतना ही रखा गया है। अधिक निश्चित जानकारी मिलनेपर इस सम्बन्धमें हम विशेष लिखेंगे।
१६६. हालका सुधार
काल कोठरी (ब्लैक होल) तो एक कलकत्तेकी ही कही जाती है। लेकिन अब एक काल कोठरी स्टजरमें बनी है। वह कलकत्तेकी काल कोठरीको भी मात देने लायक है। सरकारी जेलमें केवल ४० कैदियोंके रहने लायक जगह है। वहाँ पिछले सप्ताह २०० कैदी बन्द कर दिये गये थे। इसका असर इतना बुरा हुआ कि दुर्गंधके मारे जेलमें घुसना भी मुश्किल हो गया था। कैदी बड़े बेचैन थे। क्या यह सुधार है?
१. लगभग २० फुट लम्बी, २० फुट चौड़ी एक बन्द जगह जहाँ, कहा जाता है, सिराजुद्दौलाने १७५६ में १४६ अंग्रेजोंको रात भर बन्द रखा था, जिनमें से १२३ की मृत्यु हो गई । अब ऐसा माना जाता है कि यह ईस्ट इंडिया कम्पनीके किसी अधिकारीके कल्पनाशील मस्तिष्ककी उपज मात्र थी।
२. डबनसे ४५ मील उत्तर-पूर्व बसा हुआ एक शहर ।