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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/२६२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



उपाहार गृहके विज्ञापनके सिवाय तुमने उसके नाम कोई बिल मुझे नहीं भेजा है। मैंने तुम्हें बिल भेजनेको भी लिखा था। मेहरवानी करके भेजो। जब कोई काम करो तो उसका बिल भेजनेकी खबरदारी भी रखनी चाहिए। काम देते ही मुझे नकद पैसे मिलनेवाले थे । तुम्हारे पाससे बिल ही न आये तो नकद पैसे कैसे ले सकता हूँ [?]

मोहनदासके आशीर्वाद

संलग्न[]
श्री छगनलाल खुशालचन्द गांधी

मारफत 'इंडियन ओपिनियन',

फीनिक्स

गांधीजीके हस्ताक्षर युक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल ( एस° एन° ४३२१) से।

 

२३६. पत्र : छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग
मार्च ९, १९०६

चि° छगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। श्री बीनके विषयमें मैं समझ गया हूँ। तुमने सैमको पत्र नहीं दिया, यह ठीक किया है। ऐसे विषयोंमें मैं हमेशा तुम्हारे विचार जानना चाहता हूँ। श्री बीन अत्याग्रह करें यह मैं नहीं चाहता हूँ। मैंने अन्तिम पत्र[] कल ही लिखा है। उसके बाद और नहीं लिखूँगा। श्री किचिनको भी औपचारिक रूपसे ही लिखा है।[] उनके लिए मुझे जरा दु:ख होता है। क्योंकि, उनके कहनेके मुताबिक, उन्हें अपनी सब व्यवस्था उलट देनी पड़ेगी। उन्होंने बहुत खर्च किया है। मेरे मनमें यह बात थी कि वे फीनिक्ससे नहीं जायेंगे । इसलिए यदि वे रहें तो ठीक ऐसा मनमें होता रहता है। फिर भी उनको दुराग्रहपूर्वक रखनेका इरादा नहीं है। तुम अब श्री बीनको अधिक समझाना छोड़ दोगे, यह ठीक है। मैं अपनी जो भावनाएँ व्यक्त करता हूँ उनमें से जितना योग्य जान पड़े उतनेपर ही अमल करना चाहिए। यह समझ कर ही मैं अत्यन्त स्वतंत्रतापूर्वक, मेरे मनमें जैसे विचार आते हैं वैसे व्यक्त करता हूँ।

सारे बहीखाते तुम्हीं रखते हो, इसलिए इसका कामपर क्या असर हुआ है। बहीखाते तुरन्त तैयार हो जायें, ऐसा चाहता हूँ।

ब्रायन गैब्रियल इस महीनेके अन्तमें वहाँ आयेंगे, वे ऐसा लिखते हैं।

चि० कल्याणदासको अभी वहाँ भेज सकना मुश्किल दिखता है। मुझपर बहुत बोझ रहता है और उसे भेज देनेसे बहुत ही बढ़ जाना सम्भव है। इसके सिवाय वह खुद भी

 
  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. २.० २.१ ये पत्र उपलब्ध नहीं हैं।,