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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। अतएव इसपर अंकुश लगना चाहिए। इस दृष्टिसे एक-आध लेखकने यह सुझाव दिया है कि चीनी सरकारसे कहकर कुछ समाचारपत्रोंपर, जो अवांछनीय विचार फैलाकर गलत और हानिकारक उत्तेजना फैलाते हैं, अंकुश लगवाये जाने चाहिए; और सम्भव हो, तो उन्हें बन्द भी करना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
 

३५७. भारतमें युवराजकी यात्रा

माननीय युवराज, युवराज्ञी और उनका दल भारतकी अपनी यात्रा पूरी करके विलायत पहुँच गये हैं। लन्दनमें उनके स्वागतके लिए एक बड़ा समारोह किया गया था। उस अवसरपर माननीय युवराजने जो भाषण किया था, वह ध्यान देने योग्य है। उन्होंने भारतके लोगों का आभार माना और उनकी वफादारीकी प्रशंसा की। अन्तमें उन्होंने कहा :

मैं मानता हूँ कि यदि भारतवर्षका राज्य चलानेमें हम प्रजासे सहानुभूति बरतें, तो हमारे लिए राज्य चलाना आसान होगा, और ऐसी भावना रखनेपर मुझे विश्वास है कि हमें उसका बदला भी खूब मिलेगा। भारत जानेवाला हर अंग्रेज भारत और इंग्लैंडके बीच अधिक मेल पैदा करनेमें मदद कर सकता है और प्रेम तथा भाईचारेको बढ़ा सकता है।

इस भाषणका सही रहस्य समझनेकी जरूरत है। इस भाषणसे प्रकट होता है कि युवराज कोमल हृदय हैं। उनके मनमें भारतीयोंके प्रति सहानुभूति है। उन्होंने हमारी मुसीबतोंको समझ लिया है। और चूँकि राज-काजके मामलेमें वे खुद ज्यादा दखल नहीं दे सकते, इसलिए अपनी ओरसे उपर्युक्त इशारा करके उन्होंने भारतके शासकोंको समझाया है कि उन्हें सख्तीसे काम लेते समय सोचना चाहिए। युवराजके इस भाषणका[१] समर्थन भारतमंत्री श्री जॉन मॉलेने किया था, इसलिए यह आशा की जा सकती है कि थोड़े समयमें हमें भारतमें कुछ-न-कुछ राहत मिलेगी।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
 

३५८. बसूटोलैंडमें भारतीयोंका बहिष्कार

ब्लूमफॉटीनसे 'रैंड डेली मेल' का संवाददाता सूचित करता है कि बसूटोलैंडमें भारतीयोंको व्यापारके परवाने नहीं दिये जायेंगे। एक बार सरकारने कोई बारह परवाने देनेका विचार किया था, पर अब वह विचार छोड़ दिया गया है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
 
  1. युवराज (प्रिंस ऑफ वेल्स) के सम्मान में लन्दन के गिल्ड हॉलमें १७ मई १९०६ को एक भोज दिया गया था। युवराजके बाद श्री मॉर्ले भी बोले थे। उन्होंने युवराजके कथनका, 'कि यदि भारतवर्षका राज्य चलाने में हम प्रजासे सहानुभूति बरतें . . . . . .' वगैरहका समर्थन किया था। देखिए इडिया २५-५-१९०६।