३५९. चीनी मजदूर
हम लिख[१] चुके हैं कि बोअर किसानोंके प्रति चीनी मजदूरोंके दुष्ट व्यवहारके बारेमें जनरल बोथाने ट्रान्सवाल सरकारको पत्र लिखा था। उसके जवाब में सर रिचर्ड सॉलोमनने लिखा है कि मैं आपके पत्रके लिए आभारी हूँ। मुझे चीनियोंके निर्दयतापूर्ण व्यवहारके लिए खेद है। मैं खानोंके अधिकारियोंको सुझाऊँगा कि वे ऐसी व्यवस्था करें, जिससे चीनियोंको विस्फोटक पदार्थ न मिल सकें। चीनियोंके व्यवहारको सुधारनेके लिए जितना भी सम्भव होगा, प्रयत्न किया जायेगा। मेरी यह आन्तरिक धारणा है कि जहाँ चीनी काम करते हैं, वहाँ उन्हें अंकुशमें रखनेकी मैंने जो सिफारिश की है, उसपर अमल होते ही ऐसे अत्याचार बन्द हो जायेंगे।
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
३६०. दुकान-बन्दीका कानून
श्री रेथमनने नेटालकी विधानसभामें यह माँग की थी कि गाँववालोंकों दुकानें बन्द करनेके कानून में हेरफेर करके आधी छुट्टीका दिन स्वयं निश्चय करनेका अधिकार दे दिया जाये। इसके उत्तरमें नेटालकी सरकारने कहा है कि एक साल तक यह कानून जैसा है वैसा ही रहने दिया जायेगा। इससे जान पड़ता है कि अन्ततोगत्वा इस कानूनमें कुछ-न-कुछ परिवर्तन अवश्य किया जायेगा।
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
३६१. नेटालका चेचक-अधिनियम
ऊपरके इस अधिनियमकी धाराएँ हम पहले दे चुके हैं। इस कानूनकी कठोरताके बारेमें गोरोंने जो आपत्ति की है, उसके सम्बन्धमें भी हमने अपने पत्र में इशारा किया था। यह् मामला बहुत-कुछ आगे बढ़ा है और इसपर चर्चा चल रही है।
विरोधी पक्षवाले कहते हैं कि यह बात निश्चित रूपसे नहीं कही जा सकती कि चेचकका टीका लगानेसे आदमी चेचकका शिकार होता ही नहीं। यही नहीं, बल्कि चेचकके टीकेसे बहुत बार नुकसान भी हुआ है। ऐसे उदाहरण दिये गये हैं, जिनमें चेचकके टीकेकी लसीके कारण छोटी उम्र के बालकोंमें गर्मीकी बीमारी हुई है। साथ ही एक ऐसा विचित्र उदाहरण भी दिया गया था कि जिसमें टीका लगानेके बाद एक बालकका कद कई सालों तक बिलकुल नहीं
- ↑ देखिए "चीनियोंको वापस भेजनेका सवाल", पृष्ठ ३३२।