प्रकृतिके ऐसे कोपके समय दुनियासे मदद लिये बिना सानफ्रान्सिस्कोके पुननिर्माणके हेतु नये उत्साहसे प्रयत्न शुरू कर दिया गया है। एक सुन्दर और रमणीक सानफ्रान्सिस्कोके द्वारा संसारकी शोभा बढ़ाने के नक्शे तैयार होने लगे हैं। एक नया और दिव्य नगर बनानेके लिए जबरदस्त योजनाएँ बनने लगी हैं। दूर-दूरके देशोंसे हजारों मनुष्य यह नया शहर बनानेके लिए बुलाये गये हैं। इतना अधिक लोहा मँगवाया गया है कि सारे देशके लोहा-बाजारमें तेजी आ सकती है। नये ढंगका और इतना बड़ा बन्दरगाह बनाने की योजना की जा रही है कि वैसा बन्दरगाह दुनियामें कहीं-कहीं ही होगा। मुहल्लोंकी रचना इस प्रकार की जानेवाली है कि जिससे नये शहरकी शोभा बढ़े। इस तरह अनेक प्रकारसे वहाँके लोगोंने प्रकृतिके कोपका मुकाबला करनेके लिए कमर कसी है। मनुष्यकी जो बुद्धि बहते हुए जल-प्रपातोंसे यान्त्रिक बल पैदा करके हजारों मील दूर रेलगाड़ियों और कारखानोंको चलाने में समर्थ हुई है, बड़े-बड़े महासागरोंको पार करनेवाले जहाज और आकाशको छूनेवाले गुब्बारे बना सकी है, विश्वमण्डलके दूसरे ग्रहोंके निवासियोंसे बात करनेके प्रयोग कर रही है, वह पृथ्वीके गर्भमें होनेवाली हलचलकी गतिको पहचानकर भूकम्पको नहीं रोक पाती — यह दुःखके योग्य है; फिर भी ऐसे सर्वनाशी भूकम्प के साथ भी मनुष्य हिम्मत के साथ जूझने के लिए कमर कस रहा है, यह सचमुच खुशीकी बात है।
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६
३७२. पत्र : उपनिवेश-सचिवको
डर्बन
जून २, १९०६
माननीय उपनिवेश-सचिव
नेटाल भारतीय कांग्रेस द्वारा आहत — सहायक दल[१] खड़ा करनेकी दित्साके बारेमें आपका गत मासकी ३० तारीखका पत्र मिला।
इस दित्साको स्वीकार करनेके लिए हमारी कांग्रेसकी समिति सरकारकी कृतज्ञ है। हमारी समितिने, जैसा कि सरकारकी इच्छा है, नेटाल नागरिक सैनिक दलके मुख्य चिकित्साधिकारीसे पत्र-व्यवहार आरम्भ कर दिया है। उपर्युक्त पत्रकी प्रतिलिपि[२] साथ बन्द है।
आपके आज्ञाकारी,
ओ° एच° ए° जौहरी
एम° सी° आंगलिया
संयुक्त अवैतनिक मन्त्री, ने° भा° कां°
इंडियन ओपिनियन, ९-६-१९०६