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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी


(४) चूँकि श्री भायातकी शादी ट्रान्सवालमें हुई है, इसलिए वे ट्रान्सवालके स्थायी निवासी माने जायेंगे।

इन दलीलोंके सामने अनुमतिपत्र अधिनियम थोथा पड़ गया और मजिस्ट्रेटने यह फैसला दिया कि ऐसे व्यक्तियोंको अनुमतिपत्रकी आवश्यकता नहीं है।

यह बहुत अच्छा परिणाम निकला है, और इससे अनुमतिपत्र कार्यालयकी करारी हार हुई है। इसके जवाब में लॉर्ड सेल्बोर्न कौन-सी दलील पेश करते हैं, यह हमें देखना है।

इस मुकदमेका नतीजा यह हुआ है कि जो भारतीय पहलेसे ट्रान्सवालके निवासी हैं और जिनके पास डचों द्वारा पंजीकृत प्रमाणपत्र हैं वे ट्रान्सवालमें बिना अनुमतिपत्रके आ सकते हैं। इससे बहुत-से व्यक्तियोंका कष्ट दूर होगा।

फिर भी मुझे कहना चाहिए कि उपर्युक्त मुकदमे में घोटाला है। फोक्सरस्टके न्यायाधीश भले हैं और उन्होंने दया करके कानूनका अर्थ हमारे पक्षमें किया है। पंजीकृत लोगोंको भी अनुमतिपत्र लेना चाहिए, ऐसा कहनेवाले बहुत-से बड़े-बड़े बैरिस्टर हैं। और इस बात में काफी मुश्किलें हैं, इसमें कोई शक नहीं। फिर भी इस न्यायाधीशके फैसलेके विरुद्ध अब सरकार अपील नहीं कर सकती, इसलिए जबतक भारतीय सावधानीसे, मजबूत मुकदमा लेकर जायेंगे, तबतक उन्हें कोई रुकावट नहीं होगी। सम्भव है, लोगोंके लिए कोमाटीपोर्टके बदले फोक्सरस्ट आना अधिक आसान होगा; क्योंकि सब न्यायाधीश एक ही तरहका फैसला देंगे, ऐसा माननेका कारण नहीं है। जबतक इस मुकदमेका फैसला सर्वोच्च न्यायालयमें नहीं होता तबतक यह न माना जाये कि इस बातका अन्तिम फैसला हो गया है। साथ ही यह भी खयाल रखना है कि यह मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में ले जाने योग्य नहीं है।

जोहानिसबर्गकी नगरपालिकाका नया कानून

जोहानिसबर्गकी नगरपालिका विधानसभाके इसी सत्रमें अपने लिए नया कानून पास कराना चाहती है। उसके द्वारा वह एशियाई बस्ती अथवा 'बाजार' मुकर्रर करनेकी सत्ता चाहती है; और जिन्हें परवाना पानेका अधिकार है उन्हें, यदि उनके मकान खराब हों या उन्होंने कोई गुनाह किया हो तो, परवाना न देनेका अधिकार माँगती है। नगर परिषदका निर्णय जिन्हें मंजूर न हो वे न्यायाधीशके पास अपील कर सकते हैं। इन दोनों बातोंका विरोध करना आवश्यक नहीं दिखता। 'बाजार' मुकर्रर करनेका अख्तियार मिलनेसे नगर परिषदको उसमें भेजनेका अख्तियार नहीं मिल जाता।

लॉर्ड सेल्बोर्न

यहाँके समाचारपत्रोंसे मालूम होता है कि लॉर्ड सेल्बोर्नको दक्षिण आफ्रिकासे हटानेकी तजवीज हो रही है। आमूल सुधारवादी (रैडिकल) पक्षके सदस्योंकी मान्यता है कि लॉर्ड सेल्बोर्न उदारदलीय विचारोंको ठीक तरहसे अमल में नहीं लाते।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-६-१९०६