नहीं करते; और कुछ नगरपालिकाएँ और निकाय, संभव होता है तो, इसके लिए हिंसा तक करनेको तैयार रहते हैं। इन परिस्थितियों में, जब कि भावी स्थिति अनिश्चित है, ट्रान्सवाल सरकार द्वारा नये कानूनका बनाया जाना अजीब मालूम होता है, मानो १८८५ का कानून ३, कानूनकी कितावमें से कभी हटाया ही नहीं जायेगा।
३४.एक गुप्त बैठक
हमारे सहयोगी 'ट्रान्सवाल लोडर' ने अपने प्रिटोरियाके संवाददाताका भेजा हुआ इस आशयका एक संवाद प्रकाशित किया है कि परमश्रेष्ठ सर आर्थर लालीने एशियाई-विरोधी सम्मेलन (एंटी एशियाटिक कनवेंशन) के नेताओं को निजी तौरपर मुलाकात दी। मुलाकातियोंमें श्री लवडे और श्री बोकं भी शामिल थे। संवाददाताने यह भी लिखा है कि मुलाकात देर तक चली और मुलाकाती सर आर्थरके पाससे पूरे सन्तोषके साथ लौटे। मुलाकातमें दरअसल क्या हुआ, इसे प्रकट नहीं किया गया। लॉर्ड सेल्बोर्नने बोअर नेताओं और जिम्मेदार संघ' (रिस्पॉ- न्सिबल असोसिएशन) के सदस्योंसे मिलनेपर दूसरा ही रुख अपनाया । उन्होंने पत्र-प्रतिनिधियोंको निमन्त्रित किया और कार्रवाई प्रकाशित कराई। तो फिर, एशियाई मामलोंको इतना लुकाने- छिपानेकी क्या जरूरत थी? यदि मुलाकाती यह चाहते थे, तो क्या इसका मतलब यह है कि वे अपने कृत्यों और वक्तव्योंपर रोशनी पड़ने देनेसे डरते थे? और यदि सर आर्थरने गोप- नीयता पसन्द की थी तो हम अदबके साथ जानना चाहते हैं कि ऐसा करने में उनका मंशा क्या था? उन्हें क्या यह आशंका थी कि श्री लवडे बिलकुल अंधाधुंध वक्तव्य देंगे और इसलिए उन्हें अपनी शर्मपर परदा डालनेकी फिक्र थी? ब्रिटिश भारतीय चाहते हैं कि उनके विरुद्ध या पक्षमें जो कुछ भी कहा जाये वह पूरी तरह खुल्लमखुल्ला कहा जाये। उन्हें किसी बातका डर नहीं है, वे किसी बातको न बढ़ाकर कहना चाहते हैं न घटाकर, क्योंकि उनका पक्ष सर्वथा न्यायपूर्ण है। इसलिए हम आशा करें कि ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको कमसे-कम उन बातों- पर विचार करनेका अवसर अब भी दिया जायेगा जो उनकी पीठ पीछे, मुलाकातियोंने परम- श्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरसे कहीं।