पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/११

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भूमिका

प्रस्तुत खण्डमें २० अक्तूबर १९०६ से ३१ मई १९०७ तक की सामग्री दी गई है। इसमें गुजरातीसे अनूदित पत्रों और लेखोंका खासा अनुपात है। खण्डका प्रारम्भ शिष्टमण्डलके रूपमें गांधीजी और श्री हाजी वजीर अलीके साउथैम्प्टन पहुँचनेसे होता है।

गांधीजी जहाजपर भी ट्रान्सवाल एशियाई अधिनियम संशोधन अध्यादेशके विरोध सम्बन्धी कागजात तैयार करनेमें लगे रहे। इंग्लैंड पहुँचनेसे इंग्लैंड छोड़ने तक की सारी अवधिमें उन्होंने बड़ा कठिन परिश्रम किया। सवेरे नाश्ता करके ही वे होटलसे निकल जाते थे और शाम-तक वहाँके प्रभावशाली व्यक्तियोंसे घूम-घूम कर मिलते रहते थे। फिर लौटनेपर अर्धरात्रि बीत जाने तक बोलकर पत्र आदि लिखाते थे। यही उनका नित्यक्रम था। वे संसद सदस्यों, भूतपूर्व गवर्नरों, अवकाश प्राप्त भारतीय प्रशासन सेवकों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं, सभी से मिले। यहाँतक कि भारतीय आकांक्षाओंके विरोधियोंसे भी मिलकर उन्होंने उनकी "साम्राज्यीय" भावनाको प्रेरित किया और दक्षिण आफ्रिकावासी ब्रिटिश भारतीयोंके पक्षमें उनका समर्थन प्राप्त किया । सदाकी भाँति यहाँ भी भेदभावका राग अलापनेके बदले उन्होंने अपनी कार्य-पद्धतिके अनुरूप सहमतिके दायरे ढूँढ़े और उन्हींपर जोर दिया। उन्होंने शिष्ट- मण्डलकी ओरसे पत्रों और प्रार्थनापत्रोंके मसविदे बनानेके साथ-साथ दक्षिण आफ्रिकाकी थोक व्यापारी पेढ़ियोंके प्रतिनिधियों, चीनी राजदूत, 'लिंकन्स इन' में रहनेवाले दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीय विद्यार्थियों और अन्य अनेक लोगोंके पत्रों तथा प्रार्थनापत्रोंके मसविदे भी तैयार किये।

उन्होंने ब्रिटिश सार्वजनिक जीवनके अनेक गण्यमान्य व्यक्तियोंको "परिचयदाता शिष्ट-मण्डल" में शामिल होनेके लिए राजी किया। लगता है, कमसे-कम प्रारम्भमें उनके प्रार्थनापत्र तथा उन प्रार्थनापत्रोंके लिए प्राप्त समर्थन भारत-मन्त्री तथा उपनिवेश-मन्त्री दोनोंके प्रति कुछ हद तक कारगर सिद्ध हुए, क्योंकि लॉर्ड एलगिनने तय किया कि वे ब्रिटिश सरकारको ट्रान्सवाल अध्यादेशपर बिना और विचार किये स्वीकृति देनेकी सलाह नहीं दे सकते।

इंग्लैंडके अपने इस अल्प निवासकालमें यद्यपि गांधीजी एशियाई अधिनियम संशोधन-अध्यादेश तथा नेटाल विधानको लेकर बहुत व्यस्त थे, तथापि वे श्रीमती फीथ और डॉ० ओल्डफील्ड जैसे पुराने मित्रों तथा दक्षिण आफ्रिकाके अपने सहयोगियोंके सम्बन्धियोंसे भेंट करनेका समय निकाल सके। उन्होंने रत्नम् पत्तरकी शिक्षा और आवास तथा श्री अलीकी शुश्रूषाका प्रबन्ध भी किया, किन्तु अपनी नाक और दाँतोंके कष्टका इलाज करानेके लिए उनके पास कोई समय नहीं था।

शिष्टमण्डलके कार्योंको स्थायित्व प्रदान करने तथा भावी आवश्यकताओंको पूर्ण करनेके विचारसे गांधीजीने इसी बीच दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिके नामसे एक स्थायी संस्थाका निर्माण किया और श्री एल० डब्ल्यू० रिचको उसका मन्त्री बनाया।

शिष्टमण्डलके प्रयत्नोंके सफल होनेकी आशा लेकर गांधीजी और श्री अली सिम्बरको इंग्लैंड से रवाना हुए और १८ दिसम्बरको केप टाउन पहुँचे। यात्राके दौरान मीरामें उन्हें इस आशयके दो तार मिले कि ब्रिटिश सरकारने अध्यादेशपर दी जानेवाली स्वीकृति रोक ली है। किन्तु यह आनन्द अल्पायु सिद्ध हुआ, क्योंकि दिसम्बर ६ को ट्रान्सवालको स्वशासन