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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खण्ड १०: यह पंजीयन प्रमाणपत्रोंको उनके अभिधारकोंके उपनिवेशमें रहने के अधिकारका अन्तिम सबूत करार देता है। (सूचना--आज प्रत्येक एशियाईको, जिसके पास अपना अनुमतिपत्र है, कानूनन यह अधिकार प्राप्त है।)

खण्ड ११ और १२: ये खोये हुए प्रमाणपत्रोंके लिए प्रक्रिया निर्धारित करते हैं।

खण्ड १३: इसमें विधान है कि ऐसे किसी भी एशियाईको, जो पंजीयन प्रमाणपत्र प्रस्तुत न कर पाये, व्यापारिक परवाना नहीं दिया जायेगा।

खण्ड १४: यह पंजीयकको किसी एशियाईको आयुके मामलेमें वास्तवमें निर्णायक ही बना देता है।

खण्ड १५: यह अध्यादेशके उद्देश्योंके लिए तैयार किये गये घोषणापत्रोंको टिकट शुल्कसे छूट दिलाता है।

खण्ड १६ : यह निम्नलिखित कार्योंके लिए ५०० पौंडका जुर्माना या जुर्माना न देनेपर अधिकसे-अधिक दो सालकी सख्त या सादी कैद या कैद और जुर्माना दोनोंका विधान करता है:

(१) पंजीयनके सम्बन्धमें जाली या झूठा बयान देना या ऐसा बयान देनेके लिए किसी को प्रोत्साहित करना।

(२) पंजीयन-प्रमाणपत्रके सम्बन्धमें जालसाजी करना।

(३) इस प्रकारके प्रमाणपत्रका ऐसे व्यक्ति द्वारा उपयोग जो उसका वैध अभिधारक न हो।

(४) किसी भी व्यक्तिको ऐसे प्रमाणपत्रके उपयोगके लिए प्रोत्साहित करना।

खण्ड १७: यह अस्थायी अनुमतिपत्र जारी करनेका अधिकार देता है; और लेफ्टिनेंट गवर्नरको यह अधिकार देता है कि वह अपनी विवेकबुद्धिके अनुसार यह आदेश दे सकता है कि कोई भी एशियाई, जिसके पास अस्थायी अनुमतिपत्र है, "ऐसे अनुमतिपत्रके जारी रहने तक मद्य अध्यादेशकी व्यवस्थाके मामले में रंगदार "व्यक्ति नहीं समझा जायेगा।"

खण्ड १८: यह लेफ्टिनेंट गवर्नरको अध्यादेशके अन्तर्गत विनियम बनानेका अधिकार देता है।

खण्ड १९ : यह आम तौरपर यह विधान करता है कि कोई भी एशियाई जो अध्यादेशकी किसी शर्तको पूरा नहीं करता, १०० पौंडके भीतर जुर्मानेका भागी होगा। जुर्मानेकी रकम अदा न करनेपर उसे सख्त या सादो कैदको सजा भोगनी पड़ेगी, जिसकी अवधि तीन माससे अधिक नहीं होगी।

दूसरे खण्ड १६ वर्षसे कम उम्र के बच्चेको बिना अनुमतिपत्रके उपनिवेशमें लानेवाले एशियाईके लिए भारी दण्डका विधान करते हैं; अन्य बातोंके साथ-साथ ऐसे व्यक्तिके अनुमतिपत्र तथा पंजीयन प्रमाणपत्रको रद कर देते हैं; और अबूबकर अहमदके वारिसोंको वह जमीन रखनेका कानूनी अधिकार देते हैं जो स्वर्गीय अबूबकर अहमदने १८८५ से पहले खरीदी थी और जिसे वे अपने वारिसोंके नाम वसीयत कर गये थे।[१]

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४४७) से।

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २४१-४२।