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१२३. पत्र : जे० एच० पोलकको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर ७, १९०६

प्रिय श्री पोलक,

यह पत्र श्री रत्नम् को आपसे मिलाने के लिए है। आप इनसे सिटी ऑफ लन्दन कॉलेज ले जाने और छात्रावासमें भर्ती कराने के लिए समय निश्चित कर सकते हैं। इनकी योग्यता परखने के लिए इनसे बातचीत भी कर सकते हैं।

आपका हृदयसे,

श्री जे० एच० पोलक

२८, ग्रावने रोड

कैननबरी, एन०

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४५०८) से।

१२४. लोकसभा-भवनको बैठक

ब्रिटिश लोकसभाके उदार, मजदूर और राष्ट्रीय दलोंसे सम्बन्धित सौसे अधिक सदस्योंकी एक सभामें[१] गांधीजी और श्री अलीने भाषण दिये। यह सभा सदनके बृहद् सभा-भवनमें हुई थी।

[ लन्दन
नवम्बर ७, १९०६]

...गांधीजीने कहा कि १८८५ में गणतन्त्र सरकार और ब्रिटिश सरकारके बीच जिन कागजातका आदान-प्रदान हुआ, उनमें ब्रिटिश भारतीयोंको 'गन्दे कोड़े और आत्मारहित मनुष्य'

  1. कई सदस्योंने इसमें भाषण दिये थे। सभाके अध्यक्ष सर हेनरी कॉटनने कहा कि इस अध्यादेश के अन्तर्गत ब्रिटिश भारतीय जिस ढंगसे पुलिसकी निगरानी में रखे गये हैं वह इंग्लेंडमें जेलसे छूटे हुए कैदियोंके साथ किये जानेवाले व्यवहारसे भिन्न नहीं है। श्री अलीने ईसाइयत और मानवताके नामपर संसदके ब्रिटिश सदस्यों से भारतीयोंको इस अपमानजनक कानूनसे मुक्त कराने में सहायता देनेकी प्रार्थना की। सर चार्ल्स डिल्कने कहा कि भारतीयोंके प्रति ऐसी ईर्ष्या बहुत बुरी बात है, क्योंकि वे प्रशंसनीय व्यापारी और चिकित्सक हैं। श्री जोजेफ़ वाल्टन, श्री. हेरॉल्ड कॉक्स और श्री हायमने इस प्रस्तावका समर्थन किया कि टान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयों के दर्जेके बारेमें प्रधानमन्त्री के नाम भेजे जानेवाले प्रार्थनापत्रपर हस्ताक्षर किये जायें। सर हेनरी कोंटनने सभाकी भावनाओंको संक्षेपमें व्यक्त करते हुए कहा कि प्रश्न साम्राज्यीय महत्त्वका बन गया है और इस प्रकार यह दलगत राजनीतिके क्षेत्रसे बाहर है। शिष्टमण्डलके उद्देश्योंके समर्थन में एक प्रस्ताव सर्वसम्मतिसे स्वीकार किया गया।