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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहा गया था। तब उन्हें बड़ी निर्योग्यताएँ सहनी पड़ रही थीं। स्वास्थ्य और सफाईके उद्देश्यसे उनके लिए अलग की गई बस्तियोंके अलावा वे कहीं भू-सम्पत्ति नहीं रख सकते थे। उन्हें अपना पंजीयन कराना पड़ता था और ट्रान्सवाल सरकारको शुल्क देना पड़ता था। लार्ड डर्बोने उनके कष्टोंको कम करनेकी चेष्टा की और बादमें श्री चेम्बरलेनने बोअर सरकारको ब्रिटिश भारतीयोंके बारेमें एक सख्त खरीता भेजा जिसमें उन्होंने उनको प्रतिष्ठित लोगोंके रूपमें वर्णित किया और कहा कि वे ट्रान्सवालके लिए एक बड़ी नियामत हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि ब्रिटिश भारतीय उस देशमें स्वतन्त्र नागरिकों के रूप में रहने लगे और उनको गतिविधियोंपर किसी प्रकारकी रोक-टोक नहीं रही। हाल ही में एक नया अध्यादेश पास हुआ है और भारतीय ब्रिटिश प्रजाजन एशियाइयोंमें शामिल कर दिये गये हैं और उनके साथ बहुत ही अपमानजनक ढंगसे व्यवहार किया जाने लगा है....।

[अंग्रेजीसे]
टाइम्स, ८-११-१९०६

१२५. लॉर्ड एलगिनके नाम लिखे प्रार्थनापत्रका मसविदा[१]

लन्दन
[नवम्बर ८, १९०६ के पूर्व]

सेवामें
परममाननीय अर्ल ऑफ एलगिन
सम्राट्के मुख्य उपनिवेश मंत्री
उपनिवेश कार्यालय
लन्दन

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले, आफ्रिकी थोक-पेढ़ियोंके ब्रिटेन-निवासी प्रतिनिधियोंका प्रार्थनापत्र

सविनय निवेदन करते हैं:

कि आपके सभी प्रार्थी लन्दनकी थोक जहाजी पेढ़ियाँ और व्यापारी हैं, जिनकी दक्षिण आफ्रिकामें या तो शाखाएं हैं या व्यापारिक सम्बन्ध हैं।

आपके अधिकतर प्रार्थियोंका दक्षिण आफ्रिकाके, जिसमें ट्रान्सवाल भी शामिल है, ब्रिटिश भारतीय व्यापारियोंसे सीधा सम्पर्क रहा है।

आपके प्रार्थियोंको ट्रान्सवालके ब्रिटिश व्यापारियोंका जो अनुभव है उसके आधारपर वे यह कह सकते हैं कि ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय व्यापारी कुल मिलाकर ईमानदार और प्रतिष्ठित हैं और प्रार्थियों के साथ उनका सम्बन्ध सदा ही अत्यन्त सन्तोषजनक रहा है।

  1. प्रार्थनापत्रका मसविदा स्पष्टत: गांधीजीने तैयार किया था। यह ८ नवम्बरको एस० हॉलिक के नाम लिखे पत्रके साथ भेजा गया था। देखिए पृष्ठ ११।