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ट्रन्सिवालके ब्रिटिश भारतीय


आपके प्रार्थियोंका विचार है कि ट्रान्सवालमें उनकी उपस्थितिसे ट्रान्सवालके आम समाजको स्पष्ट लाभ है। वहाँ उनकी उपस्थितिसे ट्रान्सवालके लोगोंको कमसे-कम यह निश्चित लाभ तो है ही कि जो लोग यूरोपीय पेढ़ियों द्वारा माँगे जानेवाले अत्यधिक ऊँचे मूल्य और मुनाफा चुकानेमें अपनेको असमर्थ पाते हैं, उनके जीवन निर्वाहका खर्च कम हो जाता है।

आपके प्रार्थियोंने एशियाई कानून-संशोधन अध्यादेश पढ़ा है और उनकी सम्मतिमें इस अध्यादेशके कारण ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको सर्वथा अनावश्यक अपमान और कठिनाईका सामना करना पड़ेगा।

श्री विलियम हॉस्केन तथा ट्रान्सवालके अन्य प्रतिष्ठित यूरोपीय निवासियोंने ट्रान्सवालके परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदयकी सेवामे १९०३ के अप्रैल महीनेमें जो आवेदनपत्र[१] भेजा था उसमें व्यक्त भावनाओंके साथ आपके प्रार्थी अपनी पूर्ण सहमति प्रकट करना चाहते हैं।

आपके प्राथियोंकी विनम्र सम्मतिमें जहाँ यह वांछित है कि जनता के पूर्वग्रहको दूर करनेके लिए ब्रिटिश भारतीयोंका आव्रजन नियन्त्रित किया जाये, वहाँ साथ-ही-साथ उनका विचार यह भी है कि यह नियन्त्रण केप या नेटालकी पद्धतिपर हो और उसमें वर्गभेदकी बू न हो।

इसलिए आपके प्राथियोंकी अर्ज है कि लॉर्ड महोदय सम्राट्को यह सलाह देनेकी कृपा करें कि या तो उक्त अध्यादेश अस्वीकृत कर दिया जाये, या ट्रान्सवालमें बसे हुए ब्रिटिश भारतीयोंको ऐसी राहत दी जाये जिससे उनका पर्याप्त संरक्षण हो सके।

और इस न्याय और दयाके कार्यके लिए प्रार्थी सदा कृतज्ञ रहेंगे, आदि।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४५१०) से।

१२६. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय[२]

नवम्बर ८, १९०६

इस लेखके छपते-छपते शिष्टमण्डल लॉर्ड एलगिनसे मिल चुकेगा। यह शिष्टमण्डल बहुत ही समर्थ कहा जा सकता है। इसमें सभी विचारधाराओंका प्रतिनिधित्व है तथा संसदके प्रतिष्ठित सदस्य और बहुत ही अनुभवी आंग्ल-भारतीय शामिल हैं। ट्रान्सवालके प्रतिनिधियोंको जिस तरह सब ओरसे समर्थन और सहानुभूति प्राप्त हुई है वह महत्त्वपूर्ण बात है। नाटिंघम पूर्वके सदस्य सर हेनरी कॉटनकी अध्यक्षतामें पिछले बुधवारको लोकसभाके बृहत् समिति-कक्षमें उदार दल, मजदूर दल और राष्ट्रवादी दलके सदस्योंकी जो बैठक हुई वह शायद इसका बहुत अद्भुत उदाहरण है। पूरे सौ सदस्य उपस्थित थे। उन्होंने शिष्टमण्डलके सदस्योंकी बातें

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३१९-२०।
  2. इस लेखसे ऐसा लगता है कि लेखकको ट्रान्सवाल और इंग्लैंडकी घटनाओंकी सीधी जानकारी थी। इसके अलावा यह गांधीजीके कागजोंमें मिला है। इससे जान पड़ता है कि यह मसविदा गांधीजीका बनाया हुआ है।
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