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१२८. प्रार्थनापत्र: लॉर्ड एलगिनको

[लन्दन
नवम्बर ८, १९०६][१]

लॉर्ड महोदय,

मेरे साथी श्री अली और मैं इस शिष्टमण्डलसे भेंट करने के लिए श्रीमानको आदरपूर्वक धन्यवाद देते हैं। मैं जानता हूँ कि मेरे और श्री अलीके सामने जो कार्य है वह बहुत ही नाजुक और कठिन है; यद्यपि हमें ऐसे मित्रोंका सहारा प्राप्त है जिन्होंने विपत्तियोंमें सदैव हमारी सहायता की है और जो विभिन्न राजनीतिक विचारोंका प्रतिनिधित्व करते हैं और खास तौरसे आज जैसे दिन, स्वयं बड़ा कष्ट उठाकर, हमें अपने प्रभावका लाभ देने पधारे हैं।

लॉर्ड महोदयको मालूम है कि भारतीयोंकी एक बहुत बड़ी सभा हुई थी, जिसमें प्रस्ताव पास किये गये थे। इन प्रस्तावोंका मजमून श्रीमानको तार[२] द्वारा भेजा गया था और श्रीमानने जवाबमें[३] एक तार भेजनेकी कृपा की थी, जिसमें ब्रिटिश भारतीय संघको सूचित किया गया था कि लॉर्ड महोदयने अध्यादेशके मसविदेको पसन्द किया है, क्योंकि वह ब्रिटिश भारतीयोंको कुछ हद तक राहत देता है। हम, जो कि मौकेपर हैं और जिनपर अध्यादेश लागू होता है, श्रीमान लॉर्ड महोदयके प्रति अत्यन्त आदरभाव रखते हुए सोचते हैं कि बजाय राहत प्रदान करनेके अध्यादेश ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंपर इतनी कठिनाइयाँ लादता है कि, जहाँतक मैं जानता हूँ, औपनिवेशिक विधानमें इसकी कोई बराबरी नहीं है। अध्यादेश यह मानकर चलता है कि प्रत्येक भारतीय अपना अनुमतिपत्र किसी दूसरेको दे देनेमें सक्षम है, जिससे वह दूसरा व्यक्ति उपनिवेशमें अवैध रूपसे आ सके। इसलिए इससे इस परम्परागत सिद्धान्तका उल्लंघन होता है कि जबतक अपराध प्रमाणित न हो जाये तबतक प्रत्येक निर्दोष समझा जाना चाहिए। अध्यादेश प्रत्येक भारतीयको अपराधी ठहराता है और उसको यह सिद्ध करनेका भी कोई मौका नहीं देता कि वह निरपराध है। उसे १८८५ के कानून ३ का संशोधन कहा गया है। अत्यन्त आदर-भावसे मैं कहना चाहता हूँ कि वह किसी प्रकार उस कानूनका संशोधन नहीं है, बल्कि सर्वथा नया अध्यादेश है और अत्यन्त सन्तापजनक रूपसे रंग-विद्वेषको उत्तेजित करता है। पासोंकी जिस पद्धतिको अध्यादेश जारी करता है वह, जहाँतक ब्रिटिश भारतीयोंका सम्बन्ध है, ब्रिटिश साम्राज्यके किसी भी अन्य भागमें अज्ञात है और इससे निःसन्देह भारतीय काफिरोंसे भी नीचे हो जाते हैं। ऐसे विधानका कारण यह बताया जाता है कि ब्रिटिश भारतीयोंकी बहुत बड़ी संख्यामें अनधिकृत भरमार जारी है, और ब्रिटिश भारतीय समाज या ब्रिटिश भारतीय संघ भारतीयोंकी बहुत बड़ी संख्याको अनधिकृत रूपसे उपनिवेशमें

  1. यह ८-११-१९०६ को लॉर्ड एलगिनसे शिष्टमण्डलकी भेंटके अवसरपर दिया गया था।
  2. इस सम्बन्ध में जो तार उपलब्ध है उसमें प्रस्तावका मूल पाठ नहीं हैं। केवल अध्यादेशपर शाही अनुमति रोकनेकी ही उसमें प्रार्थना की गई है। देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४२७।
  3. पाठके लिए देखिए खण्ड ५, १४ ४६८-६९।