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लन्दन भारतीय संघकी सभा

किया गया था कि एक शिष्टमण्डल विलायत भेजा जाये। उनके इस कृत्यका एकमात्र कारण, जो मैं बतला सकता हूँ, यह है कि जब उपर्युक्त सभाके द्वारा नियुक्त उस समितिके समक्ष, जिसे लन्दन भेजे जानेवाले प्रतिनिधियोंको नामजद करनेका अधिकार सौंपा गया था, यह प्रश्न आया, तब उनको प्रतिनिधि नहीं चुना गया, जिससे उन्हें बहुत अधिक खीज हुई। श्री गॉडफ्रे तथा श्री पिल्लेके प्रार्थनापत्र में यह भी कहा गया है कि मैं एक "पेशेवर राजनीतिक आन्दोलन कारी" हूँ। जहाँतक इस वक्तव्यका सम्बन्ध है, इसकी जड़में या तो अज्ञान या जानबूझ कर की गई गलतबयानी है, क्योंकि मैं १३ वर्षोंसे अपने दक्षिण आफ्रिकी देशवासियोंकी जो सेवा कर रहा हूँ उसके मूलमें शुद्ध प्रेम-भावना ही रही है; और उससे मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होती रही है।

श्री गांधीने अन्तमें एक प्रलेख दिखाया जिसपर "जोहानिसबर्ग, १ अक्टूबर १९०६" की तारीख पड़ी हुई थी और जिसपर "अब्दुल गनी, अध्यक्ष ब्रिटिश भारतीय संघ" के हस्ताक्षर भी थे। उस प्रलेख द्वारा यह प्रमाणित किया गया था कि "ब्रिटिश भारतीय संघके अवैतनिक मन्त्री श्री गांधी और हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके अध्यक्ष हाजी वजीर अली साहवको लन्दन जानेके लिए शिष्टमण्डलका सदस्य चुना गया ताकि वहाँ एशियाई अधिनियम- संशोधन अध्यादेशके सम्बन्धमें साम्राज्यीय अधिकारियोंके समक्ष भारतीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करें और दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीयोंके इंग्लैंडवासी हितैषियोंसे मुलाकात करें।"

[अंग्रेजीसे]
इंडिया, २३-११-१९०६

१९५. लन्दन भारतीय संघको सभा[१]

[नवम्बर १६, १९०६ के बाद]

३ नवम्बरको ८४ व ८५ पैलेस चेम्बर्स, वेस्टमिन्स्टर में माननीय दादाभाई नौरोजीकी अध्यक्षता में लन्दन भारतीय संघकी एक सभा हुई जिसमें काफी लोग उपस्थित थे। इसमें नेटालवासी श्री जेम्स गॉडफेने उक्त शीर्षकसे[२] एक निबन्ध पढ़ा। श्री गॉडफ्रे फिलहाल बैरिस्टरीके पाठ्यक्रमसे सम्बन्धित अपना कार्यक्रम पूरा कर रहे हैं और अपनी अन्तिम परीक्षा पास कर चुके हैं। नीचे उनके निबन्धका सार दिया जाता है:

यहाँ आनेके बाद मुझे इन लोगोंके अध्ययनका पर्याप्त अवसर मिला है और मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि हम उनसे बहुत-से बेशकीमती सबक ले सकते हैं।

अब हम उनका परीक्षण एवं विश्लेषण करें और यह देखें कि किन गुणोंके कारण उनको अपनी वर्तमान स्थिति प्राप्त हुई है और ऐसे कौन-से सबल तत्व हैं जिनके कारण उनको

  1. यह ३ नवम्बरको हुई एक सभाकी रिपोर्ट हैं और इंडियन ओपिनियन में "विशेष लेख" के रूपमें छपी थी। इसे गांधीजीने लिखा था, देखिए "पत्र: श्री हेनरी एल० एस० पोलकको", पृष्ठ १८०-८१।
  2. "अंग्रेज, मेरी नज़र में" (इंग्लिशमैन ऐज़ आई फाईड हिम), यह लेख उक्त उपशीर्षकसे प्रकाशित किया गया था।