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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्थायी समिति

स्थायी समिति स्थापित करनेके सम्बन्ध में तार आ गया है। उसके आधारपर एक वर्षके लिए एक छोटा-सा कमरा किरायेपर ले लिया गया है। उसका किराया ४० पौंड देना होगा। सर मंचरजी बहुत मदद करते हैं। वे ही, बहुत सम्भव है, उसके अध्यक्ष होंगे। २५ पौंड की साज-सज्जा खरीदी गई है। योजना यह है कि जिन सज्जनोंने मदद की है उनका आभार माननेके लिए भोज दिया जाये और उसी समय समितिकी घोषणा की जाये। समय बहुत ही कम है, इसलिए इसमें से कितना किया जा सकेगा, यह तो बादमें मालूम होगा। श्री रिच इस समितिके मन्त्री होंगे और चूँकि वे गरीबीकी हालत में हैं, इसलिए उन्हें हर माह बराय नाम ७।। या १० पौंड निर्वाहके लिए देने होंगे। वे अपना पूरा समय समितिको देंगे। २६ तारीखको उनका भाषण पूर्व भारत संघ में होगा। सम्भव हुआ तो उसका सारांश अगले सप्ताह दूँगा[१]। समितिके द्वारा बहुत काम होगा, यह आशा अकारण नहीं है। उसे सम्पूर्ण दक्षिण आफ्रिका से मदद मिलेगी। सर मंचरजीने उसका नाम दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय चौकसी समिति (साउथ आफ्रिका ब्रिटिश इंडियन विजिलेन्स कमिटी) दिया है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-१२-१९०६

२०८. पत्र: मॉर्लेके निजी सचिवको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर २०, १९०६

सेवामें
निजी सचिव
परममाननीय जॉन मॉर्ले
महामहिमके मुख्य भारत-मन्त्री
भारत-कार्यालय
लन्दन

महोदय,

अगले गुरुवारको शिष्टमण्डलके जो सदस्य मेरे और श्री अलीके साथ आयेंगे, उनकी सूची इस पत्रके साथ सेवामें प्रेषित कर रहा हूँ।

श्री मॉर्लने जैसी इच्छा व्यक्त की थी उसके अनुसार सदस्योंकी संख्या यथासम्भव सीमित रखी गई है। और भी बहुत-से सज्जनोंने अपनी सहानुभूति व्यक्त की है; और वे शिष्टमण्डल में सम्मिलित होनेके लिए तैयार थे, किन्तु उपर्युक्त कारणसे नहीं आयेंगे।

  1. देखिए "पूर्व भारत संघमें श्री रिचका भाषण", पृष्ठ २७२-७३।