लॉर्ड एलगिनके निजी सचिवसे ट्रान्सवाल तथा नेटालके सम्बन्धमें बातचीत हुई। उनके साथ बहुत-सी बातें हुई हैं और आशा है कि परिणाम कुछ तो ठीक होगा ही। श्री चचिलने सर हेनरी कॉटनको जो उत्तर दिया है उससे मालूम होता है कि अभी तत्काल तो कानूनको स्वीकार नहीं किया जायेगा।
अखिल इस्लाम संघ (पान इस्लामिक सोसाइटी) ने लॉर्ड एलगिनको अर्जी भेजी है । उसमें लिखा है कि यह कानून तुर्कीके मुसलमानोंपर तो लागू किया गया है, लेकिन तुर्कीके ईसाइयों और यहूदियोंको उससे बरी रखकर मुस्लिम समाजका दिल बहुत दुखाया गया है। इस तरह सब तरफसे मदद मिल रही है।
सर रिचर्ड सॉलोमनके साथ श्री अलीकी मुलाकात हुई है। उससे भी आशा बँधती है।
डॉ० गॉडफेकी अर्जी[१]
गुलाबके पौधे में काँटे होते ही हैं। उसी प्रकार आशारूपी गुलाबके पौधे में गॉडफेकी अर्जी रूपी काँटा देखने में आया है। उससे मैं निराश नहीं हूँ। इसलिए परेशान होनेकी जरूरत नहीं। डॉ० गॉडफ्रेपर नाराज नहीं होना है। वह बालक है और नादान है। बहुधा उसे अपनी मूर्खताका भान नहीं रहता। उसे तिरस्कार के बजाय दयाकी नजरसे देखना चाहिए। वह अर्जी हमें लॉर्ड एलगिनके सचिवने दिखा दी है। उसमें उसने लिखा है कि भारतीय समाजने श्री गांधी और श्री अलीको अधिकार नहीं दिया। श्री गांधी किराये के आन्दोलनकारी हैं; उन्होंने इसी तरह धन्धे से धन जोड़ा है। १८९६[२] में डर्बनके गोरोंने उन्हें मारकर निकाल बाहर किया था। उनके कामसे बहुत ही नुकसान हुआ है और गोरे-कालेके बीच भेद पड़ा है। दूसरे व्यक्ति हैं अब्दुल गनी। वह अध्यक्ष हैं। उन्हें कुछ भी नहीं मालूम। श्री अली हुल्लड़बाज हैं और राजनीतिक मामलों में भी खलीफाकी[३] दुहाई फिराना चाहते हैं। इस अर्जीपर डॉ० गॉडफ्रे और श्री सी० एम० पिल्लेकी सही है। उन्होंने यह भी लिखा है कि संघके डरसे बहुतेरे लोग सही नहीं करते। एक कागज और भी है। उसपर ४३७ भारतीयोंकी सहियाँ बताई जाती हैं। उसमें यह लिखा है कि श्री गांधी और श्री अलीको भारतीय समाजकी ओरसे कोई अधिकार नहीं। इस अर्जी के सम्बन्ध में सर हेनरी कॉटनने प्रश्न किया ही था, इसलिए इसका मुख्य हिस्सा लोग जानते हैं। यह प्रश्न बहुतेरे व्यक्तियोंने किया है, इसलिए सर मंचरजीने पत्र लिखा है जो अभी प्रकाशित नहीं हुआ। श्री गांधीने भी लिखा है; और डॉ० गॉडफेके दोनों भाइयोंने भी अखबारोंमें लिखा है। ये दोनों भाई शिष्टमण्डलको उसके काममें मदद देते हैं। ये सब पत्र प्रकाशित हो जायेंगे, तो लगता है कि सब कुछ शान्त हो जायगा। ये सब खबरें देनी तो चाहिए, लेकिन इनसे घबड़ानेकी जरा भी आवश्यकता नहीं।
लन्दन 'टाइम्स' में लेख
पिछले शनिवारको 'टाइम्स' में एक जोरदार लेख प्रकाशित हुआ था। उसकी प्रतिलिपि पिछले सप्ताह ही भेज दी गई है। सर रोपर लेथब्रिजके लेखमें भी कहा गया है कि भारतीय समाजपर पड़नेवाली मुसीबतोंकी बाबत भारत बहुत नाराज हो रहा है।