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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मूलपत्र लॉर्ड महोदयके अवलोकनके लिए इसके साथ संलग्न है। डॉ॰ गॉडफ्रे बहुत समय तक श्री गांधीके मुवक्किल रहे हैं। और सन् १९०४ में प्लेग के रोगियोंकी सेवा-शुश्रूषामें उनके साथ थे एवं उस समय रोगियोंके कष्टमोचनके लिए उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया था। इसलिए उनके इस व्यवहारका स्पष्टीकरण केवल एक ही प्रकारसे किया जा सकता है कि उन्होंने ऐसा अपनी तेजमिजाजीकी वजहसे किया है। मालूम होता है कि इस सम्बन्ध में निराशाके कारण उनका दिमाग सन्तुलन खो बैठा। उनके व्यवहारका उदारतम स्पष्टीकरण यही प्रतीत होता है, अन्यथा उनके द्वारा अध्यादेशकी तीव्र निन्दा और श्री अलीकी जोरदार सिफारिशकी इस अर्जीको भेजने से संगति न बैठेगी। निम्न तारसे, जो प्रतिनिधियोंको मिला है और लॉर्ड महोदयको भेजा जा चुका है[१], यह प्रकट हो जायेगा कि एक अलग कागजपर ४३७ भारतीयोंके जो हस्ताक्षर प्राप्त किये गये हैं, वे धोखे से प्राप्त किये गये हैं :

हलफिया बयान गॉडफेने झूठे बहानोंसे "बिआस" (ब्रिटिश इंडियन असोसिएशनका सांकेतिक शब्द) नामका प्रयोग करके कोरे कागजपर हस्ताक्षर प्राप्त किये। हस्ताक्षर अब वापस ले लिये गये हैं। (लॉर्ड) एलगिनको तार दे रहे हैं। समाचारपत्रों में सम्मेलनके पूर्ण विवरण छपे है।

१४. प्रतिनिधि दुःखके साथ और अनिच्छापूर्वक उक्त वक्तव्य देनेके लिए बाध्य हुए हैं। इसमें उनका इरादा कतई यह नहीं रहा है कि डॉ॰ गॉडफ्रे या उनके साथीको हानि पहुँचे और यदि वे अपने सम्बन्धमें कुछ कहने के लिए बाध्य हुए हैं तो अपने उन देशवासियोंके प्रति वाजिब सर्वोच्च कर्त्तव्यकी भावनासे, जिनके हितोंका प्रतिनिधित्व करनेका उनको सम्मान प्राप्त है। चूँकि यहाँ इस अर्जीके द्वारा और जोहानिसबर्गमें 'स्टार' द्वारा व्यक्तियोंका प्रश्न उठाया गया है, इसलिए लॉर्ड महोदयको सम्मानपूर्वक यह बताना आवश्यक हो गया है कि जहाँतक इस विवाद में व्यक्तिगत तत्वका असर पड़ता है, प्रतिनिधियोंने जो रुख अख्तियार किया है वह उनकी विनीत सम्मतिमें सूक्ष्मतम जाँचके बाद समाजके पक्षमें ही भारी रहेगा। उनकी यह इच्छा है कि सारे अध्यादेशकी जाँच उसके गुणावगुणोंकी दृष्टिसे की जाये और इसीलिए वे सम्मानपूर्वक कुछ मुद्दोंपर चर्चा करेंगे जो शिष्टमण्डलको दिये गये लॉर्ड महोदयके उत्तरसे उठते हैं।

लॉर्ड एलगिनका उत्तर : १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत अनुमतिपत्र नहीं दिये जायेंगे

१५. लॉर्ड महोदयका खयाल यह है कि १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत बोअर-शासनमें अनुमतिपत्रोंका चलन था और बोअर शासन अनुमतिपत्रोंकी व्यवस्थामें लापरवाह था। प्रतिनिधि सम्मानपूर्वक यह कहने का साहस करते हैं कि बोअरोंके लिए कानून में अनुमतिपत्रोंका लेना कतई जरूरी नहीं था। इसलिए ३ पौंडके लिए दी गई रसीदें गलत नहीं थीं। वे प्रवेश या निवासका अधिकार देनेवाले अनुमतिपत्र नहीं थे। १८८५ के कानून ३ में प्रवासपर कोई प्रतिबन्ध लगानेका इरादा नहीं था, जैसा कि खुद कानूनसे मालूम होता है। इसलिए शिनाख्तका कोई सवाल ही नहीं था।

अनुमतिपत्र ब्रिटिश शासनका शान्ति-रक्षा अध्यादेश लागू होनेके बाद ही चालू हुए।

  1. देखिए "पत्र : लॉर्ड एलागिनके निजी सचिवको", पृष्ठ १५६।