पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/२४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१३
पत्र : लॉर्ड एलगिनके निजी सचिवको


यह अन्तर यह बतानेके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है कि एशियाई अध्यादेश, जो अब विचारके लिए लॉर्ड महोदय के सम्मुख है, संशोधन नहीं है, बल्कि एक नया कानून है। उससे जो बात बोअर-शासनमें गलत थी वह सही नहीं हो जाती। उससे एक नई निर्योग्यता पैदा होती है।

स्वेच्छासे अँगूठा निशानी

१६. सादर निवेदन है कि भारतीय समाजने अनुमतिपत्रों और पंजीयन प्रमाणपत्रोंपर स्वेच्छा से जो अँगूठा निशानी दी थी, वह संजीदगीके साथ लॉर्ड मिलनरको प्रसन्न करनेके लिए दी थी और ऐसी अँगूठा निशानीके लिए बाध्य करनेवाले विधानको टालनेके लिए ही। अतः उस कदमको एक नजीर बना कर समाजके विरुद्ध प्रयुक्त करना शायद ही न्यायसंगत होगा।

नया पंजीयन

१७. इसके अलावा, जो पंजीकृत हैं उनको नये पंजीयनसे अन्तिम और पक्का अधिकार मिल जायेगा, यह वक्तव्य प्रतिनिधियोंकी विनीत सम्मतिमें तथ्योंके अनुकूल नहीं है। जिनके पास अनुमतिपत्र हैं उनका अधिकार आज कानूनमें पक्का है। नये अध्यादेशसे वह अधिकार वस्तुतः रद्द हो जायेगा, मिलेगा नहीं। समाजके पास फिलहाल जो कुछ है उससे उसको वंचित करनेके बाद, कानून संदिग्ध महत्त्वका एक नया अधिकार वापस देगा, जो अपमानजनक शर्तों और सजाओंसे जकड़ा होगा। इसलिए इससे समाजसे जो कुछ छीना जायेगा, उसका केवल एक अंश ही उसको वापस मिलेगा।

निरीक्षण

१८. नये अध्यादेशके अन्तर्गत दैनिक निरीक्षण किया जाना सम्भव है। लॉर्ड महोदयको दिया गया यह आश्वासन, कि निरीक्षण वार्षिक होगा, विषयान्तर है। इस बातका कोई भरोसा नहीं है कि एक ही कार्यपालक सत्ता बराबर पदारूढ़ रहेगी। समाज लगभग बराबर यह अनुभव करता आया है कि दक्षिण आफ्रिकामें कार्यपालिकाको जो निरंकुश सत्ता दी गई है उसका प्रयोग मनमाने तौरपर और प्रायः पूर्ण रूपसे ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध किया जाता रहा है। जब कोई प्रतिबन्ध कानून एक ऐसे समाजके विरुद्ध पास किया जाता है, जो लोक-विद्वेषसे पीड़ित है, तब कार्यपालिका प्रतिबन्धोंको पूरी तरहसे लागू करनेकी लोगोंकी माँगका मुकाबला करनेमें असमर्थ हो जाती है। १८८५ के कानून ३ और शान्ति-रक्षा अध्यादेशके सम्बन्ध में वर्तमान कार्यपालिकाके साथ यही हुआ है। यह बात यहाँतक हुई है कि भारतीय समाजको कार्यपालिका द्वारा उक्त कानूनोंका ऐसा अर्थ, जो सामान्यतः उनसे नहीं निकल सकता, निकालने के प्रयत्नका विरोध करनेके लिए सर्वोच्च न्यायालय में जाना पड़ा था।

प्रार्थना

१९. भारतीय समाजके लिए यह जीवन-मरणका प्रश्न है। हम सादर जोर देकर कहते हैं कि इस मामलेकी उचित छानबीन केवल एक अदालती आयोग द्वारा ही की जा सकती है। यदि लॉर्ड महोदयको भारतीयोंके कथनके न्यायसंगत होनेके सम्बन्धमें सन्तोष नहीं है, तो निवेदन है कि आयोगकी जाँच होने तक निर्णय स्थगित रखा जाये।

मो॰ क॰ गांधी
हा॰ व॰ अली

[संलग्न २]

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (सी॰ ओ॰ २९१, खण्ड ११३, इंडिविजु-अल्स) तथा टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४५४५) से।