पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


श्री गांधी और उस मूर्खतापूर्ण प्रार्थनापत्रके बारेमें, जो उनके और उनके कार्यके विरोधमें भेजा गया है, मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह काम एक शरारती स्कूली छोकरेका है और वे सभी लोग जो श्री गांधीको जानते हैं या उनके कामसे जिनका वर्षों सम्बन्ध रहा है, जैसा कि मेरा रहा है, जानते हैं कि वे बिना किसी व्यक्तिगत प्रयोजन या लाभके इस विशिष्ट उद्देश्यके प्रति एकान्त-भावसे काम करते रहे हैं; उनकी रीति-नीति बिलकुल निःस्वार्थ रही है—यह बात में शपथपूर्वक कह सकता हूँ।

मुझे लगता है, मैं बिना किसी मुगालते इस सम्बन्धमें एक बात कह सकता हूँ। महोदय, इस बातको आपसे अधिक कोई भी नहीं जानता कि इस मामलेमें भारतकी भावना कितनी तीव्र है। एकके बाद एक आनेवाले वाइसराय और भारतमन्त्रीने यह बात भारत-कार्यालय और उपनिवेश कार्यालयके सामने रखी है। उन स्मरणपत्रोंके जवाबमें, जो मैंने ही उनकी सेवामें प्रेषित किये थे, स्वयं उपनिवेश-मन्त्रियोंने दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायतोंके साथ उतनी ही गहरी सहानुभूति प्रदर्शित की जितनी भारतीय वाइसराय और लन्दनमें भारत-मन्त्रियोंने की। इस बातको विस्तारसे कहने की जरूरत नहीं है। इंग्लैंड और उसके उपनिवेशोंके सम्बन्ध मुझे बहुत-कुछ वैसे ही लगते हैं जैसे आज संयुक्त-राज्यकी केन्द्रीय सरकार और कैलिफोर्निया राज्यके बीच हैं और यह स्थिति संसारके बहुतसे भागों में गम्भीर हो जायेगी। (तालियाँ)। निस्सन्देह इस मामलेमें जबरदस्त कठिनाइयाँ हैं। आपके सामने दो विपरीत स्थितियाँ हैं—पहली स्पष्ट और किंचित् अपरिपक्व है, फिर भी उसका आधार गौरवपूर्ण और योग्य है। वह स्थिति यह है कि ब्रिटिश झंडेके नीचे रहने- वाले हरएक प्रजाजनको व्यक्तिगत स्वतन्त्रता चाहिए, उसे बिना रोक-टोकके इज्जतके साथ आने-जाने और सम्मानपूर्ण अपने योग्य कोई धन्धा चुननेकी छूट चाहिए। (तालियाँ)। महोदय, यह बात सारे साम्राज्यपर लागू है, किन्तु दूसरी ओरसे इसके मुकाबले में मजदूरी घटानेका विरोध करनेवाली स्थिति पेश की जाती है। निस्सन्देह जहाँतक गोरोंका सवाल है, वे यह चाहते हैं और यह चाहना बिलकुल ठीक है कि मजदूरीकी दर और अधिक होनी चाहिए। एक ऐसे परिश्रमी और संयमी समाजका आना, जो बहुत थोड़े में निर्वाह कर सकता है, गोरोंकी आमदनीकी दरोंको कम कर देता है और वे इतने थोड़े में अपना निर्वाह नहीं कर सकते। ये दो विरोधी बातें हैं और इन्हें किसी सेतुबन्धके द्वारा शान्तिपूर्वक जोड़ा जाना चाहिए; महोदय, हमारी आपसे प्रार्थना है कि आप प्रयत्न करें और उसे बनाएँ।

इसके अतिरिक्त में यह भी कहूँगा कि दो कारणोंसे आप ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो इस अत्यन्त उलझे हुए मामलेके दावोंको सन्तुष्ट कर सकते हैं। पहली बात तो यह है कि भारत-मन्त्रीके नाते आपके पास बन्द करने और खोलनेकी चाबियाँ हैं।

मैं थोड़े में अपनी बात स्पष्ट करना चाहता हूँ। उदाहरणके लिए नेटालको लीजिए। पूर्व भारत संघके अध्यक्षकी हैसियतसे मैंने एकाधिक बार उपनिवेश-मन्त्रीके नाम आवेदनपत्र भेजे हैं कि नेटालको उस समय तक कोई गिरमिटिया मजदूर न भेजे जायें, जबतक दक्षिण आफ्रिकामें उनके सह-प्रजाजनोंका दर्जा नहीं बदल जाता। नेटाल भारतीयोंके बिना नहीं रह सकता, फिर भी वह उनपर अत्याचार करता है; और पहले तो उनपर उसने ट्रान्सवालकी