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शिष्टमण्डल : श्री मॉर्लेकी सेवामें

अपेक्षा भी अधिक अत्याचार किया था; यद्यपि नेटालको प्रतिवर्ष अधिका-धिक भारतीय मजदूरोंकी जरूरत पड़ती है, क्योंकि ब्रिटिश उपनिवेशी स्वयं खेतों में काम नहीं कर सकते। उनकी हालत अभीतक कुछ अच्छी नहीं है। ये ऐसे देश हैं जिन्हें किसी भी दिन अंग्रेजोंके बलपर नहीं बसाया जा सकता।

महोदय, मेरी समझमें इतना ही कहना आवश्यक है, किन्तु मैं एक अन्तिम व्यक्तिगत प्रार्थना आपसे करूँगा कि में आपको इस प्रश्नका समाधान करने लायक एकमात्र व्यक्ति इसलिए भी मानता हूँ कि आपने अंग्रेज जातिको जो अमर कृति[१] दी है, वह समझौतेपर लिखी गई है और मुझे सन्देह नहीं है कि इस अत्यन्त उलझे हुए प्रश्नकी चाबी हमें वहाँ मिल सकेगी।

श्री गांधी : महोदय, मैं अपने सहयोगी श्री अलीकी और अपनी ओरसे आपको सादर धन्यवाद देता हूँ कि आपने हमें अपनी बातें पेश करनेका अवसर दिया किन्तु, मैं आपका बहुमूल्य समय लेने के लिए क्षमा-प्रार्थी नहीं हूँ; क्योंकि महोदय, मेरी समझमें हमें जब भी अपने अधिकार खतरे में दिखें, तभी हमें, आपके पास आनेका हक है, क्योंकि आप हमारे जिम्मेदार वकील और न्यासी हैं। जैसा कि सर लेपेल ग्रिफिनने कहा है, एशियाई अध्यादेश लॉर्ड एलगिनने, मेरे विचारसे, एक गलतफहमीके कारण मान लिया था। उक्त अध्यादेश, मेरे नम्र विचारसे, उपनिवेशीय विधानके बारेमें अबतक की उपनिवेशीय नीतिसे हट जाता है। उपनिवेश मन्त्रियों और भारत-मन्त्रियोंने स्वतन्त्र प्रवासियोंसे सम्बन्धित जिस रंगभेदका विरोध सफलता के साथ किया, मेरी रायमें उक्त अध्यादेश अकारण उसी रंगभेदकी रेखाएं खींचता है। एक दक्षिण आफ्रिकी उपनिवेश-निवासीने इस अध्यादेशके बारेमें यह कहा है कि हम इसके कारण गलेमें कुत्तेका पट्टा बाँधकर चलने के लिए बाध्य होंगे और एक दुःखी भारतीयने किसी सार्वजनिक सभामें यह कहा कि हमारे साथ जो व्यवहार किया जायेगा वह किसी उपनिवेशीय कुत्तेकी तरह भी नहीं होगा, क्योंकि वह तो पला हुआ कुत्ता है, बल्कि हमारे साथ भारतीय कुत्ते जैसा व्यवहार किया जायेगा जो एक दुरदुराने लायक प्राणी है। मैं यह मानता हूँ कि मेरे समाजके अधिकांश भागको जो अनुभव सदा ही होता रहता है यह कटुता उससे उत्पन्न हुई थी। महोदय, मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मेरे समाजकी उस विशाल सभामें जो बात कही गई, वह ब्रिटिश भारतीयोंको ट्रान्सवाल और दक्षिण आफ्रिकाके अन्य भागों में बार- बार होनेवाले अनुभवोंसे पूरी तरह सिद्ध हो गई है। अध्यादेशको लागू करनेके कारण, 'स्टार' में किसीकी प्रेरणा से लिखाये गये एक लेखमें तथा श्री डंकन द्वारा, इस तरह बताये गये हैं कि ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीय अथवा एशियाई बड़ी संख्यामें अनधिकृत रूपसे आ रहे हैं और ब्रिटिश भारतीय इस एशियाई बाढ़को जान-बूझकर प्रोत्साहन देते हैं। महोदय, मेरी समझ में यह दोषारोपण अथवा ये दोनों ही दोषारोपण बिलकुल झूठे सिद्ध किये जा सकते हैं। बड़े पैमाने-पर अनधिकृत प्रवेशसे उनका यह अर्थ है कि ब्रिटिश भारतीय पुलिसको चकमा देकर बिना अनुमतिपत्रोंके ट्रान्सवालमें आ जाते हैं और प्रवेश करते हुए शान्ति-रक्षा अध्यादेशको जान-बूझ कर भंग करते हैं; यह अध्यादेश ट्रान्सवालमें केवल ब्रिटिश भारतीयोंके प्रवेशका नियमन कर रहा है, जबकि उसे सबके प्रवेशका नियमन करना चाहिए। जब जनगणना की गई थी और उस समय पाया गया कि १२,००० अनुमतिपत्रोंके बीच १०,००० ब्रिटिश भारतीय थे।

  1. यहाँ श्री मॉर्लेके निबन्ध—समझौतेके सम्बन्धमें (ऑन कॉम्प्रोमाइज़) की ओर संकेत है।