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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दावा करते थे; अब वह हमारा अपना उपनिवेश है, हमारी अपनी फौजसे प्रतिरक्षित है, तब हम चुपचाप खिसक जाते हैं और उनकी इच्छाका विरोध करनेका साहस नहीं करते। यदि बात ऐसी है, तो हमें समस्त साम्राज्यका शासन करनेवाली जाति होनेका कतई दावा ही नहीं करना चाहिए। (तालियाँ)!

तथ्य यह है कि बहुमत परदेशियोंका है, क्योंकि न केवल वहाँकी गोरी आबादी मुख्यतः बोअर हैं, बल्कि आये हुए गोरे भी ज्यादातर परदेशी ही हैं। इसलिए यदि हम स्वीकार कर लें—क्योंकि में इसे बहुत बड़ी हद तक पथभ्रष्ट होना मानता हूँ—तो हम इस प्रस्तावको अंग्रेज होनेके नाते इंग्लैंडकी ओरसे स्वीकार करते हैं कि ब्रिटिश साम्राज्यके बहुसंख्यक निवासी ब्रिटिश साम्राज्यके अल्पसंख्यकोंके मुकाबले में सदा कम दर्जें के माने जायें। किसी भी ब्रिटिश सरकारके लिए यह एक बड़ी ही गम्भीर बात है और विशेषतः उदारदलीय सरकारके लिए। इसलिए श्री मॉर्ले, मैं आपके सामने जो विशिष्ट निवेदन करना चाहता हूँ और जो सर लेपेल ग्रिफिन कहना भूल गये, वह यह है कि इसके पहले, कि ब्रिटिश भारतीय-विरोधी किसी विधानको वर्तमान सरकार मंजूरी दे, दक्षिण आफ्रिकामें परिस्थितिकी जाँच करने और उसपर अपना मन्तव्य देनेके लिए एक आयोग भेजा जाये।

लॉर्ड स्टैनले ऑफ ऐल्डर्ले : . . .मैं व्यक्तिगत रूपसे कह सकता हूँ कि यह मामला जितने न्यायको अपेक्षा रखता है, मेरी समझमें आवेदनपत्रमें उससे बहुत कमकी प्रार्थना की गई है। मुझे ऐसा लगता है कि इस सम्बन्धमें जो कठिनाई हमारे बिलकुल सामने खड़ी है उसके लिए यदि हम किसी सिद्धान्तको पकड़ कर नहीं चले, तो वह दिनोंदिन बढ़ती ही जायेगी। मुझे भय है कि ज्यादातर भाषण एक खराब सिद्धान्तका विरोध करनेके बजाय सफाई देते हुए-से जान पड़ते हैं।. . . ट्रान्सवालकी विजयके समय बोअरोंसे समझौता करते हुए हमने जो रुख अख्तियार किया, मैं आपका ध्यान उससे सम्बन्धित उस अंशकी ओर आकर्षित करना चाहता हूँ जो हमारे मामलेको जोरदार ढंगसे पेश करता है। मेरा तात्पर्य श्री चेम्बरलेन के १९०१ के उस तारसे है जो कलोनियल कागजात, ५२८, पृष्ठ ५ पर मिलेगा। श्री चेम्बरलेनने उस समय तार दिया था कि रंगदार लोगोंकी कानूनी स्थिति उसी प्रकारकी होगी जैसी उनकी केप कालोनीमें है। स्वशासित उपनिवेशोंसे केन्द्रीय सत्ताके उलझे हुए सम्बन्धोंको देखते हुए मैं कदापि नहीं कह सकता कि हम लोग उपनिवेशकी राजनीतिक व्यवस्था और अधिकारोंमें हस्तक्षेप करनेकी कल्पना नहीं कर सकते, बल्कि मुझे निश्चय ही ऐसा मालूम होता है कि जबतक उपनिवेश ब्रिटिश झंडेके नीचे संरक्षण और ब्रिटिश साम्राज्यके सहारेकी माँग करते हैं, तबतक हमें यह अपेक्षा रखनेका भी अधिकार है कि वे नागरिक अधिकार दें; राजनीतिक अधिकारोंका प्रश्न उनकी मर्जीपर छोड़ा जा सकता है।

अब कदाचित् आप कह सकते हैं, 'केन्द्रीय सरकार और उपनिवेशोंके बीच में मतभेद होनेपर मैं इस मामलेपर जोर किस तरह दे सकता हूँ?' मैं यह नहीं कहता कि आप ऐसी जबरदस्ती कर सकते हैं। ये समस्याएँ सहगामी अधिकारोंके उलझे हुए सम्बन्धोंकी समस्याएँ हैं; और यद्यपि सिद्धान्ततः तो इस देशको संसद सर्वोच्च सत्ता सम्पन्न है, फिर भी जब उपनिवेश कोई कार्रवाई करता है तब संसदकी सर्वोच्च सत्ताको काममें लानेका कोई स्वप्न भी