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शिष्टमण्डल : श्री मॉर्लेकी सेवामें

यह स्वशासनसम्पन्न उपनिवेशोंमें एक पूर्व उदाहरण पेश करेगा। महोदय, मैं इस तथ्यकी ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि केप उपनिवेशके, जहाँका में १३ वर्ष तक अधिवासी रहा हूँ, उत्तरदायी शासनके अन्तर्गत मुझे लोकसभा में मताधिकारका, जमीन-जायदाद रखनेका और खानें खुदवानेका हक था और वहाँ हमें आजतक भी वे ही अधिकार प्राप्त हैं। अब साम्राज्यीय उपनिवेशके अन्तर्गत ऐसे विधानपर विचार किया जा रहा है जो भारतीयोंके खिलाफ है। इसलिए मेरे मुसलमान समाजने मुझे विशेष तौरपर आपके सामने ट्रान्सवालके भारतीयों की स्थिति रखनेके विचारसे भेजा है। हमें ब्रिटिश प्रजाकी तरह ही सरकारसे सुविधा और अधिकार प्राप्त करनेका पूरा अधिकार है। यदि ब्रिटिश सरकार भारतसे बाहर गये असंख्य भारतीयोंको संरक्षण न देनेकी बात स्वीकार करनेपर तत्पर हो, तो बात अलग है। यदि ब्रिटिश सरकार ऐसी बात कहनेके लिए तैयार हो, तो कोई भी भारतीय भारत छोड़कर ब्रिटिश उपनिवेशोंमें जाने से पहले इस मामलेपर सौ बार सोचेगा। (तालियाँ)!

श्री है॰ कॉक्स : मैं इस प्रश्नके सम्बन्धमें बहुत थोड़ी बातें कहना चाहता हूँ। . . . भारतीय दूकानदार अथवा भारतीय व्यापारी गोरे दूकानदारोंके मुकाबले में अधिक कुशल है। जैसा कि श्री गांधीने कहा, ये गोरे दूकानदार प्रायः ब्रिटिश प्रजा न होकर दक्षिण यूरोप या रूससे आये हुए परदेशी हैं। किन्तु जिस प्रश्नपर इस समय ब्रिटिश सरकारको विचार करना है, वह यह है कि क्या ब्रिटिश प्रजाजनोंके मुकाबलेमें परदेशी गोरे दुकानदारोंकी पद्धति बरकरार रखी जाये। वास्तवमें प्रश्न यही है कि क्या हम ट्रान्सवालमें आये हुए परदेशी दूकानदारोंको लगभग आर्थिक मदद पहुँचाएँ और उन्हें पक्षपातपूर्ण व्यापारका अधिकार दें। इस सम्बन्धमें एक और बहुत बड़ा प्रश्न उपस्थित होता है कि दक्षिण अफ्रिकाकी कौमों का भविष्य क्या होगा। दक्षिण आफ्रिकाकी आबादीके आँकड़ोंकी जाँच करनेसे और विशेषतः आबादीकी बुद्धिसे मुझे इस बातका पूरा भरोसा हो गया है कि दक्षिण आफ्रिका गोरोंका देश न है, न कभी हो सकता है। गोरोंके मुकाबलेमें काले लोग बहुत अधिक गतिसे बढ़ रहे हैं। यह ठीक है कि दक्षिण आफ्रिकामें गोरे रह सकते हैं और बढ़ भी सकते हैं; किन्तु सभी इस बातको मानते हैं कि गोरे आदमी मजदूरी नहीं कर सकते, इसलिए अनेक लोगोंने यह सुझाया है कि चूँकि गोरे आदमी शारीरिक श्रम नहीं करेंगे, इसलिए हमें चाहिए कि हम दूकानदारीके कामके लिए उन्हें विशिष्ट सुविधाएँ दें। मेरे विचारमें यह एक असह्य स्थिति है। शेष आबादीके प्रति यह अन्याय है और उन भारतीयोंके प्रति भी जो इस काम में लगना चाहते हैं। भारतीय अधिक धैर्यवान हैं और वतनियोंमें अधिक लोकप्रिय हैं। इसके सिवाय दक्षिण आफ्रिकाके बहुत-से गोरे भी इन भारतीय व्यापारियोंका स्वागत करते हैं, क्योंकि उन्हें उनसे अपेक्षाकृत सस्ती चीजें प्राप्त हो सकती हैं। एक अंग्रेज महिलाने मुझसे कहा कि उसके पतिको भारतीय व्यापारियोंसे व्यवहार रखने में आपत्ति है, किन्तु फिर भी वह हमेशा उन्हींसे व्यवहार रखती है, क्योंकि उसे उनसे चीजें सस्ती मिलती हैं।

कुछ भी हो, हमें इन उपनिवेशोंकी रक्षा करनी है। हम ट्रान्सवालकी प्रतिरक्षाके लिए फौजें रखते हैं और उनका खर्च उठाते हैं, इसलिए स्थिति इस प्रकार है कि जब ट्रान्सवाल एक परकीय देश था, तब हम अपनी प्रजाकी ओर हस्तक्षेप करनेके अधिकारका

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