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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मजदूरोंके प्रश्नके समय इस बातपर इतना अधिक जोर दे दिया है कि यदि इस प्रश्नको वर्तमान लोकसभाके सम्मुख सारे तथ्यों समेत सोच समझकर पेश किया गया, और यदि सदा एक-से व्यवहारका कोई अर्थ है, तो इसका उत्तर भी एक ही प्रकारसे दिया जा सकेगा।

श्री मॉर्ले :. . .मैं मानता हूँ कि इसमें कोई सन्देह नहीं और प्रत्येक व्यक्ति जिसे भारतका कुछ भी अनुभव है तथा जिससे मैंने इस विषयपर बात की है, यह मानता है कि इसका भारतके लोकमतपर स्वाभाविक रूपसे गम्भीर असर है और होना चाहिए। जो लोग दक्षिण आफ्रिका जाते हैं, वे आगे-पीछे वापस भी आते हैं और उस अपमानकी जगह-जगह चर्चा करते हैं जो उनको और उनके आत्मीयोंको सहना पड़ा है। यह अपने आपमें पूर्वग्रहों को भड़कानेके लिए पर्याप्त है। अक्सर भारतवर्षके लोग—विचारशील लोग—अपने आपसे प्रश्न करते हैं कि क्या यह अभाव ब्रिटिश सरकारकी इच्छा-शक्ति अथवा बलका है कि वह अभी-अभी ब्रिटिश ताजके अधिकारमें आये हुए क्षेत्रोंमें लोगोंको ऐसी असुविधाओंके बीच अरक्षित छोड़ देती है। इस नव-अधिकृत क्षेत्रको स्थितिकी विडम्बनाकी एकाधिक वक्ताओंने बात की है और मुझे सचमुच बड़ी खुशी हुई कि मेरे मित्र लॉर्ड स्टैनलेने श्री चेम्बरलेनका १९०१ का तार पढ़कर सुनाया और लॉर्ड लैन्सडाउनने युद्धके पहले या दूसरे हफ्ते में शेफील्डमें जो प्रसिद्ध भाषण दिया था उसका उल्लेख किया गया है। श्री चेम्बरलेन—उनकी प्रशंसा में यह कहा ही जाना चाहिए—अपने उपनिवेश कार्यालयके समस्त कार्यकालमें सदा इस प्रकारके अन्याय, अत्याचार और अपमानपूर्ण कार्रवाइयोंका पूरी शक्तिके साथ विरोध करते रहे. . .।

मैं फिर कहता हूँ कि यह बड़ी विडम्बना है कि ब्रिटिश सरकारको जिन अधिनियमोंकी ओर पहले-पहल ध्यान देना पड़ा, उनमें एक ऐसा अध्यादेश है जो—हम कुछ भी क्यों न कहें—परिणामतः अन्य आचार-विचारोंके साथ मिलकर करोड़ों ब्रिटिश प्रजाजनोंपर निर्योग्यताका ठप्पा लगा देनेका काम करता है। (तालियाँ)

यद्यपि एक उत्तरदायी मन्त्री कदाचित् ही सिद्धान्तकी दुहाई पसन्द करता है, मुझे इस बातकी बड़ी प्रसन्नता है कि लॉर्ड स्टैनलेने निर्भीक होकर उसी कठिन और काँटों-भरे आधारको अपनाया है। यह बहुत अच्छी बात है कि उन्होंने हमें यह स्मरण कराया है। कि जिन सिद्धान्तोंका वे उल्लेख कर रहे हैं और जो आज लागू किये जा रहे हैं, वे तनिक पुराने हो गये हैं। किन्तु मैं उनके पालनके विषयमें पूरी तरह उनसे सहमत हूँ। (तालियाँ) किन्तु हम, कमसे कम में एक जिम्मेदार पदपर हूँ और प्रश्न यह नहीं है कि यदि हमारे सामने एक कोरा कागज होता तो हम क्या करना चाहते, बल्कि यह है, जैसा कि लॉर्ड स्टैनलेने स्वीकार किया कि हमें मनमें अपने सिद्धान्तको रखना है और व्यावहारिक क्षेत्रमें उसे जितना अधिक लागू कर सकें, उतना लागू करना है।

किन्तु, तब, भारत-कार्यालयकी स्थिति क्या है? याद रखिए कि यह जिस विभाग और मन्त्रीसे सम्बन्धित है वह प्राथमिक, तात्कालिक तथा एक अर्थ में अन्तिम रूपसे भी, उपनिवेश मन्त्री ही हैं।. . .सज्जनो, आयोगके मार्ग में मुझे एक जबर्दस्त कठिनाई दिखाई देती है और वह मैं आपके सामने रखता हूँ; वह यह है कि हमें ट्रान्सवालके लोगों को मई तक उत्तरदायी शासन देनेकी आशा है। ऐसे आयोगकी नियुक्तिसे उपनिवेशके हाथमें