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पत्र: 'साउथ आफ्रिका' को

किन्तु यह कहकर मैं बातसे बहुत दूर जा रहा हूँ। मेरा खयाल है कि लॉर्ड स्टैनलेने इस प्रकारकी बातोंकी कल्पनाका लोभ मुझमें जगा दिया था। अन्ततोगत्वा यदि में कर सकता हूँ, तो वह यही है कि यदि भारतकी कोई भावना हो, तो उसे पहुँचा देनेकी कोशिश करूँ। आप और वे निश्चिन्त रहें कि प्रसंग आनेपर इन सख्त और अप्रतिष्ठापूर्ण अपमानोंके विरुद्ध तीव्र सम्मति प्रकाशन अथवा विरोधके तौरपर जो कुछ किया जा सकता है, किया जायेगा और यह कार्यालय, उपनिवेश-कार्यालय जो आवेदन करना चाहेगा, उन्हें समर्थन देनेमें अथवा, सम्भव है, उनसे भी दो कदम आगे बढ़कर कुछ कहने में देरी नहीं लगायेगा। (तालियाँ)! मेरे जैसे पदपर आसीन कोई भी आदमी आपको वचन देनेसे ज्यादा कुछ नहीं कर सकता और मैं पूरी ईमानदारीके साथ आपको वचन देता हूँ और आप सब लोगोंने जो सर्वसाधारण दृष्टिकोण इतनी योग्यताके साथ मेरे सामने रखा है, मैं उसे समझ गया हूँ और में न केवल उससे सहानुभूति रखता हूँ जिसका आज किसीने भाषण में उल्लेख किया था, बल्कि मैं उसका जितना समर्थन कर सकता हूँ, उतना करता हूँ। (तालियाँ)!

सर लेपेल ग्रिफिन : श्री मॉर्ले, मैं शिष्टमण्डलकी ओरसे हार्दिक धन्यवाद देता हूँ कि आपने अत्यन्त सहानुभूति और स्नेहके साथ देर तक हमारी बातें सुनीं और उनका हमें उत्तर दिया।

इसके बाद शिष्टमण्डल चला आया।

[अंग्रेजीसे]
जर्नल ऑफ द ईस्ट इंडिया असोसिएशन, अप्रैल १९०७
 

२४०. पत्र : 'साउथ आफ्रिका' को

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर २२, १९०६

सम्पादक
'साउथ आफ्रिका'
[लन्दन]
महोदय,

आपने ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिपर विचारके लिए अपने स्तम्भ खोलकर ब्रिटिश भारतीय शिष्टमण्डलको अत्यन्त अनुगृहीत किया है और, लॉर्ड मिलनरके शब्दों में केवल ऐसे विचारविमर्शसे ही हम किसी उचित समाधानके समीप पहुँच सकते हैं। किन्तु आपने अपनी टिप्पणीमें ब्रिटिश भारतीय समाजपर मताधिकार और ट्रान्सवालमें एशियाइयोंको भर देनेकी इच्छाका आरोप लगाकर उसके साथ न्याय नहीं किया है। क्या मैं यह कह सकता हूँ कि इस समाजने ट्रान्सवालमें राजनीतिक सत्ताकी या उसको ब्रिटिश भारतीयोंसे भर देनेकी इच्छा कभी नहीं की और इसी कारण उसने केप या नेटालके नमूनेका कानून मंजूर