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शिष्टमण्डलकी टीपें—३

अन्य मुलाकातें और सहानुभूतियाँ

इस प्रकार श्री मॉलेने सख्त भाषण किया। फिर भी मैं अभी यह आशा नहीं कर सकता कि अध्यादेश नामंजर कर दिया जायेगा। मालूम होता है कि ट्रान्सवालसे सख्त पत्र आये हैं। यह भी दिखाई देता है कि यहाँके राज्यकर्त्ता मन-ही-मन मानते हैं कि हम हलके दर्जेकी प्रजा हैं, इसलिए हमपर जितना भी बोझ लादा जा सकता हो, उतना लादने में कोई हर्ज नहीं। आज हम श्री लिटिलटनसे मिले तथा बम्बईके भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश सर रेमंड वेस्टसे[१] भी मिले। उनका विचार भी वैसा ही दिखाई देता है। उनकी भावना अच्छी है। लेकिन उन्होंने कह दिया कि जितना जोर गोरे रखते हैं, उतना जोर जबतक हम नहीं रखेंगे, तबतक हमारी सुनवाई नहीं होगी। उपनिवेशसे वे डरते हैं। इसका कारण यह नहीं कि वे गोरे हैं, बल्कि यह है कि वे समर्थ हैं। यदि यह विचार ठीक हो तो हमें समझना चाहिए कि हमारा उद्धार हमारे ही हाथ होगा।

हमारी मुक्ति

इसी विचारके सिलसिलेमें कुमारी मिलनका किस्सा कह देना ठीक होगा। कुमारी मिलन स्त्रियोंके लिए मताधिकार चाहनेवाली महिलाओंमें से एक हैं। उन्होंने संसद भवनमें भाषण देना शुरू किया। पुलिसने रोका। फिर भी उन्होंने भाषण जारी रखा। उन्हें गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया गया। न्यायाधीशने उन्हें १०शि० का जुर्माना या सात दिनकी कैदकी सज़ा दी। उन वीर महिलाने जुर्माना न देकर जेल जाना मंजूर किया।

इंग्लैंडसे यह हमारा अन्तिम पत्र होगा। इसलिए सबसे प्रार्थना है कि यह मानकर कि कानून स्वीकार हो ही जायेगा, ट्रान्सवालके प्रत्येक भारतीयको कुमारी मिलनके समान ही जेल जाना मंजूर करना चाहिए। चौथे प्रस्तावमें भारतीयोंको गुलामी से मुक्त करने की कुंजी है, इसमें मुझे कतई शक नहीं। और यदि इस प्रस्तावपर अमल होता है, तो कानून स्वीकार होता है या नहीं, इसकी मुझे जरा भी चिन्ता नहीं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-१२-१९०६

  1. (१८३२-१९१२); न्यायज्ञ, बंबई विश्वविद्यालयके उपकुलपति तथा भारतको कृषि विषयक ॠणसुविधाओं के पुरस्कर्ता।