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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

या उसके पास सत्ता नहीं है। दोनों बातों में नुकसान है। मैं मानता हूँ कि १९०१ में श्री चेम्बरलेनने भारतीयोंके लिए जो संघर्ष किया था उसके लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए। इस नई सरकारके सामने जो पहली हकीकत आई है सो यह है कि उपनिवेशमें भारतीयोंपर काले लोग होनेका ठप्पा लगा दिया जाता है। यदि सत्ताधारियोंसे नीतिकी बातें की जायें तो वे उन्हें अरुचिकर लगती हैं। लेकिन लॉर्ड स्टैनलेने जो नीतिकी बातें कही हैं उससे मुझे खुशी हुई है। कोई-कोई लॉर्ड स्टैनलेकी नीतिकी बातोंको बूढ़ेकी सीख मानते होंगे। मैं वैसा नहीं मानता। लेकिन दुर्भाग्यसे हमें कोरे कागजपर लिखना मुयस्सर नहीं है। हमें वास्तविकताको समझना चाहिए और फिर, जहाँतक हो सके, नीतियुक्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसलिए अब भारत मन्त्रालय क्या कर सकता है, यह देखेंगे। सर लेपेल ग्रिफिनने स्वीकार किया है कि मुख्य सत्ता तो लॉर्ड एलगिनके हाथमें है। सर मंचरजी मुझसे कहते हैं कि मुझे आयोगकी माँग करनी चाहिए, परन्तु कठिनाई यह आती है कि मई महीनेमें उत्तरदायी शासन मिल जायेगा। तब यदि नई सरकार और आयोगकी सिफारिशोंमें विरोध पैदा हो जाये तो बहुत ही गम्भीर बात होगी। आयोग द्वारा इस विवादका कभी अन्त भी होगा, यह मैं नहीं मानता। मैं संसदमें कई वर्ष रहा हूँ। लेकिन मुझे एक भी ऐसा प्रसंग याद नहीं आता जिसका निबटारा आयोगके द्वारा हुआ हो। नई सरकारके स्थापित होते ही उसके साथ झगड़ेका मौका आ जानेकी सम्भावना है। सच तो यह है कि हम स्वराज्य प्राप्त उपनिवेशको हुक्म नहीं दे सकते। हम विनती कर सकते हैं, दलील कर सकते हैं, हमारी नीति कायम रखे, इसके लिए उसपर दबाव डाल सकते हैं। औपनिवेशिक सम्मेलन में या खरीतोंमें बेशक लॉर्ड एलगिन सख्त दलीलें और बातें करेंगे। हर वाइसरायने इस सम्बन्ध में लिखा-पढ़ी की है। लॉर्ड कर्ज़नने बहुत ही सख्त लिखा था। उन्होंने नेटालके बारेमें बहुत-से विचार जाहिर किये हैं। लेकिन नेटालने लॉर्ड कर्ज़नकी बात नहीं मानी। अब ट्रान्सवाल सुनता है या नहीं, यह देखना है। ट्रान्सवालमें भारतीयोंके विरुद्ध ज्यादा गोरे नहीं हैं, यह जानकर मुझे खुशी होती है। छोटे गोरे व्यापारी यदि विरोध करते हैं, तो मैं समझ सकता हूँ। यदि [पहलेसे आकर बसा हुआ] कोई भारतीय भी [नये आनेवालेसे] विरोध करे तो वह भी समझा जा सकता है।[१] लेकिन मेरी समझमें यह तो नहीं आता कि सम्पूर्ण गोरा समाज काली चमड़ीका विरोध करता है। मैं जानता हूँ कि ट्रान्सवालमें गोरोंसे ऊँचे स्तरके [भारतीय] लोग बहुत हैं। उनपर जुल्म कैसे किया जा सकता है? भारतीयोंपर गुजरते हुए दुःखोंसे जैसे लॉर्ड लैन्सडाउनके दिल को चोट लगती थी, वैसे ही मेरा भी खून खौलता है। लेकिन यह याद रखना आवश्यक है कि जितने जोरसे हम विदेशी राज्यसे बात कर सकते हैं उतने जोरसे उपनिवेशसे नहीं कर सकते। परन्तु यहाँ भावावेशमें मैं लॉर्ड स्टैनलेसे आगे बढ़ रहा हूँ। मुझे केवल इतना ही कहना है कि मुझसे जितनी भी बनी, उतनी मदद करना मेरा फर्ज है। सख्त पत्र-व्यवहार जितना किया जा सकता है उतना करने में भारत मन्त्रालय कभी नहीं चूकेगा। इतना तो विश्वासपूर्वक कहता हूँ कि मैं उपनिवेश कार्यालयका पूरा समर्थन करनेमें ही नहीं, बल्कि उससे आगे जानेमें भी नहीं चूकूँगा।

  1. श्री मॉलेके भाषणके दफ्तरी विवरण में यह कथन नहीं मिलता। देखिए पृष्ठ २२८-३१।