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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अध्यादेश इस इलाकेके मिलाये जानेसे पहलेकी कानूनी शर्तोंको स्थायी नहीं करता; क्योंकि कब्जेसे पहलेकी कानूनी स्थिति यह थी कि जिन्हें वह जमीन दी गई थी, उन्हें केवल रिहायशी अधिकार प्राप्त था। अब अध्यादेश उन्हें स्थायी स्वामित्व प्रदान करता है और कब्जेदारोंको यह अधिकार देता है कि वे एशियाइयोंको छोड़कर चाहे जिसके नाम अपना पट्टा बदल सकते हैं। इस तरह व्यक्तिगत कब्जेकी कानूनी शर्त अब परिवर्तनीय पट्टोंके रूपमें बदली जा रही है।

मैं इस वक्तव्यका विरोध करने की धृष्टता करता हूँ कि फ्रीडडॉर्पमें भारतीयोंने कानूनी शर्तोंको तोड़कर अधिकार ले लिये थे। गरीब डच नागरिकोंके अलावा अन्य लोगोंने जिस तरह वहाँ कब्जा किया उसी तरह भारतीयोंने भी किया। यह भी सही नहीं है कि फ्रीडडॉपमें भारतीयोंने झोपड़ियाँ बना रखी हैं। मेरी नम्र सम्मतिमें अगर सब मिलाकर देखा जाये तो जिन्हें झोपड़ियाँ कहा गया है वे फ्रीडडॉपैकी कितनी ही इमारतोंसे बेहतर हैं।

यदि गोरों और रंगदार लोगोंके निवासोंको अलग-अलग रखनेका सिद्धान्त उचित माना जाये तो मुझे भय है कि अगर ब्रिटिश भारतीयोंमें थोड़ा भी आत्माभिमान हुआ तो उनके ट्रान्सवाल-निवासका सर्वथा अन्त हो जायेगा। ऐसे सिद्धान्तका तर्कसंगत परिणाम ऐसी पृथक् बस्तियोंकी पद्धतिके रूपमें निष्पन्न होगा जो सैकड़ों इज्जतदार और कानूनपर चलनेवाले भारतीयोंके विनाशका कारण बनेगा।

भारतीय मामलोंके सम्बन्धमें लॉर्ड महोदयके सामने जैसी गलत जानकारी पेश की गई है वह भयावह है। और यह बड़े ही दुःखकी बात है कि जो कानून किसी भी हालत में न्यायोचित नहीं कहा जा सकता, वह भ्रामक और गलत वक्तव्योंके आधारपर उचित ठहराया जाता है।

उपर्युक्त विचार प्रकट करनेकी धृष्टता करते हुए हमारा मंशा लॉर्ड सेल्बोर्नपर दोष लगानेका नहीं है, बल्कि हम विनयपूर्वक यह निवेदन करना चाहते हैं कि स्वयं लॉर्ड सेल्बोर्नको भ्रामक जानकारी दी जाती है। यह दुःखद बात उन लोगोंके सामने स्पष्ट है जो मौकेपर उपस्थित हैं और जिन्हें प्रशासनका भीतरी हाल मालूम है।

आपका आज्ञाकारी सेवक

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४६३५) से।