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२६६. पत्र : विन्स्टन चर्चिलके निजी सचिवको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर २७, १९०६

सेवामें
निजी सचिव
श्री विन्स्टन चर्चिल

प्रिय महोदय,

श्री विन्स्टन चर्चिलकी इच्छा के अनुसार हम एक-एक कागजपर तीनों वक्तव्य आपके पास भेज रहे हैं। पहलेमें एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश, दूसरेमें फीडडॉर्प बाड़ा अध्यादेश[१] और तीसरेमें सामान्य प्रश्नपर ब्रिटिश भारतीय समाजका मत दिया गया है।

आपके विश्वस्त,

संलग्न : ३

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४६५३) से।
 

[संलग्न]
फ्रीडडॉर्प बाड़ा-अध्यादेशपर आपत्तियाँ

१. यदि अध्यादेश मंजूर कर लिया गया तो यह जोहानिसबर्ग या ट्रान्सवालकी दूसरी बस्तियोंके पट्टोंमें किसी वर्गको अयोग्य करार देनेवाली धाराओं को शामिल करनेके लिए एक नजीर बन जायेगा। इसलिए यह अध्यादेश भारतीयों के अधिकारोंको सीमित करनेकी दृष्टिसे १८८५ के कानून ३ से आगे बढ़ जायेगा।

२. ब्रिटिश भारतीयोंने बोअर सरकारके जानते हुए फ्रीडडॉर्प में बहुत-से अन्य यूरोपीयोंके समान ही बाड़ोंपर कब्जा करके मकान बना लिये थे। ये यूरोपीय उन मूल नागरिकोंमें से नहीं थे जिन्हें स्वर्गीय राष्ट्रपति क्रूगरसे बाड़ोंपर रिहायशी अधिकार प्राप्त हुए थे।

३. फ्रीडडॉर्प मलायी बस्तीसे लगा हुआ है, जिसमें ब्रिटिश भारतीय बहुत बड़ी संख्या में आबाद हैं।

४. अध्यादेश युद्ध-पूर्वकी कानूनी स्थितिको स्थायी नहीं बनाता, बल्कि वह मूल नागरिकोंको स्थायी अधिकार प्रदान करता है और साथ ही उन्हें फिर किरायेपर उठानेका अधिकार भी दे देता है। इस अधिकारके अनुसार वे यूरोपीय, जो नागरिक नहीं थे, नागरिकों

 
  1. तीनों संलग्न पत्रोंमेंसे केवल एक—"फ्रीडडॉर्प बाड़ा अध्यादेशपर आपत्तियाँ" उपलब्ध है, जो यहाँ दिया जा रहा है।