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२८५. पूर्व भारत संघ में श्री रिचका भाषण[१]

[दिसम्बर १८, १९०६ के पूर्व]

श्री रिचने पिछले नवम्बरकी २६ तारीखको पूर्व भारत संघके आमन्त्रणपर दक्षिण आफ्रिका भारतीयोंको होनेवाले कष्टोंके सम्बन्ध में कैक्स्टन हॉलमें भाषण दिया था। श्री मंचरजी अध्यक्ष थे। लॉर्ड रे, सर रेमंड वेस्ट, सर फ्रेडरिक टेलर, सर जॉर्ज बर्डवुड, श्री कॉटन, श्री बेनेट, श्री ब्राउन, श्री मॉरिसन, श्री अराथून आदि बहुत से लोग उपस्थित थे। भारतीयों में प्रोफेसर परमानन्द, श्री मुकर्जी, आदि आये थे। श्री रिचने अपने भाषण में सारे दक्षिण आफ्रिका [के भारतीयों] का हाल कहा था। भाषणकी बहुतेरी दलीलोंसे इस पत्रके पाठक परिचित हैं। इसलिए उसका सार हम यहाँ नहीं दे रहे हैं।

श्री रिचके भाषणके बाद श्री अली और श्री गांधीको बोलनेके लिए कहा गया। श्री गांधीने पूर्व भारत संघने जो कुछ मदद दी थी उसके लिए आभार मानते हुए कहा कि यदि ट्रान्सवालका नया कानून पास हो गया तो उसका उत्तरदायित्व प्रत्येक अंग्रेजपर होगा। दक्षिण आफ्रिका में जितने भी कानून बनाये जाते हैं वे सब सम्राट्के नामसे बनते हैं। अतः अंग्रेज प्रजाको तीस करोड़ भारतीयोंके साथ जरा भी न्याय करनेकी इच्छा हो तो उसे उनपर उपनिवेशमें होनेवाले कष्टों को दूर करनेकी व्यवस्था करनी चाहिए।

श्री अलीने श्री गांधीकी बातका समर्थन किया और कहा कि जब आमिनियन आदि लोग चैनसे ट्रान्सवालमें आ सकते हैं तब भारतीयोंको कष्ट भोगना पड़े, यह तो कभी नहीं होना चाहिए।

सर रेमंड वेस्टने भाषण करते हुए कहा कि वे श्री रिचका भाषण और प्रतिनिधियोंकी रिपोर्ट सुनकर लज्जित हुए हैं। उपनिवेशोंको स्वराज्य दे दिया गया इससे क्या अंग्रेजोंका कर्तव्य पूरा हो गया? यदि यह बात हो तो "इम्पीरियल रेस" शब्दोंका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। उपनिवेशोंको स्वराज्य मिल जानेका अर्थ यह नहीं कि वे काले लोगोंको कुचल डालें। भारतीयोंका मामला बहुत मजबूत है और धीरज रखनेसे निश्चय ही उन्हें न्याय मिलेगा।

श्री थॉर्नटनने कहा कि ट्रान्सवालके भारतीयोंको निश्चय ही न्याय मिलना चाहिए। उनकी माँग इतनी सरल है कि उसके सम्बन्ध में दो राय नहीं हो सकतीं।

'पारसी क्रॉनिकल' के सम्पादक श्री नसरवानजी कूपरने कहा कि उन्होंने ब्रिटिश गियानाकी यात्रा की है। वहाँके भारतीयोंकी हालत बहुत ही अच्छी है। उन्हें सारे अधिकार हैं और बहुतेरे भारतीय ऊँची-ऊँची जगहोंपर पहुँच गये हैं। दक्षिण आफ्रिकामें भी भारतीयोंकी वैसी ही स्थिति होनी चाहिए। उन्हें कष्ट हो, यह बहुत ही बड़ा अन्याय माना जायेगा।

लंकाके एक बगान मालिक श्री बाइजने कहा कि श्री रिचने गिरमिटिया लोगोंके सम्बन्धमें जो बात कही है वह ठीक नहीं है। वे लोग अपनी इच्छासे जाते हैं, और इसमें किसीकी आपत्तिके योग्य कुछ नहीं है। उसके बाद श्री मार्टिन वुड, सर लेज्ली प्रॉबेन आदि सज्जन बोले।

  1. इसका मसविदा गांधीजीने जहाजपर तैयार किया था। देखिए "शिष्टमण्डलफी टीपें—४," पृष्ठ २७५।