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२८४. पत्र : प्रोफेसर गोखलेको

यूनियन-कासिल लाइन
आर॰ एम॰ एस॰ 'ब्रिटन'
दिसम्बर ३, १९०६

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

मैं जोहानिसबर्ग वापस जा रहा हूँ। मैंने आपको लन्दनसे[१] पत्र लिखा था। सर मंचरजीका सुझाव है कि जिस तरह लन्दन में दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समिति बनी है, उसी तरह भारतमें भी अलग समिति होनी चाहिए। शायद अबतक आप लन्दन समितिके बारेमें सब कुछ जान चुके होंगे। यदि भारतमें भी ऐसी एक समिति बने तो मुझे कोई सन्देह नहीं है कि उसे सब दलोंका सहयोग मिलेगा। श्री बेनेटने मुझे बताया कि 'टाइम्स' के श्री फ्रेजर खुशी से मदद देंगे। व्यापार संघके बहुत-से सदस्य भी सहयोग दे सकते हैं और आगाखाँ तो ऐसा करेंगे ही। यदि ऐसे किसी संगठनकी स्थापना हो सके, तो वह बहुत प्रभावजनक काम करेगा।

लन्दन में इस प्रश्नके महत्त्वको हरएकने पूरा-पूरा समझा। मुझे मालूम है कि सर फीरोजशाह इस मामलेमें हमारे साथ सहमत नहीं हैं, किन्तु मैं यह माननेकी धृष्टता करता हूँ कि वे गलतीपर हैं। कुछ भी हो, यदि समितिकी स्थापना हो जाये और वह बहुत अच्छा काम न भी करे तो भी उससे कोई हानि नहीं होगी। समिति बनानेके लिए आपको कुछ ऐसे स्थानीय सज्जनोंकी आवश्यकता होगी जिन्हें दक्षिण अफ्रिकाकी परिस्थितिकी सही जानकारी हो। उनके बारेमें मैं कोई सुझाव नहीं दे सकता।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्चः] कृपया मुझे बॉक्स ६५२२, जोहानिसबर्ग के पतेपर पत्र लिखें।

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रतिको फोटो-नकल (जी॰ एन॰ २२४६) से।

  1. यह पत्र उपलब्ध नहीं हुआ।