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१. भेंट : 'ट्रिब्यून' को'[१]

दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीयोंका शिष्टमण्डल, जिसमें गांधीजी और श्री अली सम्मिलित थे, २० अक्तूबर १९०६ को इंग्लैंड पहुँचा। साउथैम्प्टन में, जहाजपर, 'ट्रिब्यून' के प्रतिनिधिने उसी दिन गांधीजीसे भेंट की। भेंटमें उन्होंने कहा :

[ साउथैम्प्टन
अक्तूबर २०, १९०६ ]

हमें लगता है, लॉर्ड एलगिनके सामने स्थिति ठोकसे नहीं रखी गई है। हाल में ट्रान्सवाल सरकारने एशियाइयोंके सम्बन्ध में एक संशोधन अध्यादेश पास किया है।

जिस कानूनके विरोधमें हम लॉर्ड एलगिनकी सेवामें उपस्थित होनेवाले हैं उसका आशय इस समय ट्रान्सवालमें बसे प्रत्येक भारतीयको, काफिरोंकी तरह, पास रखनेपर मजबूर करना है। परन्तु भारतीय पासोंकी प्रणाली बहुत ज्यादा सख्त और कठोर होगी। ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक पासपर उसके धनीकी दसों अँगुलियोंके निशान अंकित रहेंगे। ट्रान्सवालके सभी भारतीयोंको, चाहे उनका दर्जा कुछ भी हो, इसके आगे झुकना पड़ेगा--भले ही वे अंग्रेजी या कोई अन्य यूरोपीय भाषा पढ़ने-लिखनेमें समर्थ हों।

जैसा कि उपनिवेश सचिवने बताया, इस कानूनको प्रस्तावित करनेका कारण यह है कि ट्रान्सवालमें भारतीय उमड़े चले आ रहे हैं। ब्रिटिश भारतीय समाजने बराबर इस आरोपका खण्डन किया है और इसकी जाँचके लिए आयोगकी मांग की है। अनुमतिपत्रोंके अनुसार ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी आबादी १३,००० है और जनगणनामें वह १०,००० पाई गई है। यह भी कह दूं कि उन्हें अनेक अन्य निर्योग्यताएँ भी झेलनी पड़ती हैं। उनके निवासके लिए निर्धारित बस्तियों या बाड़ोंके अतिरिक्त उन्हें कहीं भूस्वामित्वका अधिकार प्राप्त नहीं है। वे जोहानिसबर्ग या प्रिटोरियामें ड़ियोंमें नहीं चढ़ सकते, और रेल यात्रा में भी कुछ कठिनाइयाँ हैं। कुछ ऐसे भी विनियम हैं जिनके द्वारा अन्य एशियाइयोंके साथ ब्रिटिश भारतीयोंको भी पैदल-पटरियोंपर चलनेकी मनाही है। यद्यपि ये विनियम प्रयोगमें नहीं लाये जा रहे हैं, परन्तु विधि-संहितामें ये अभी भी वर्तमान हैं। यह बात खास तौरसे जोहानिसबर्ग और प्रिटोरियाके साथ लागू होती है।

नये अध्यादेशमें एक धारा इस आशयकी है कि जबतक सम्राट् अपनी यह इच्छा व्यक्त न कर दें कि इसे अस्वीकार नहीं किया जायेगा, तबतक यह लागू नहीं होगा। साथ ही, ट्रान्सवाल में व्याप्त रंग-विद्वेषको दृष्टिमें रखते हुए हमने ऐसे सुस्पष्ट विनियमों द्वारा, जो कठोर और वर्गभेदकारी न हों, आगामी आव्रजनपर प्रतिबन्ध लगानेके सिद्धान्तको बराबर स्वीकार किया है। निरपवाद रूपसे हमारा यह अनुभव रहा है कि जहाँ-कहीं वर्गविषयक कानून बना है वहाँ राहत पाना उन स्थानोंकी अपेक्षा बहुत अधिक कठिन सिद्ध हुआ है जहाँ सर्वसामान्य रूपसे लागू होनेवाले नियम हैं; उदाहरण के लिए, जैसे केप और नेटाल में हैं।

६-१

  1. यह विवरण २४-११-१९०६ के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था।