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२९१. तार : द॰ आ॰ ब्रि॰ भा॰ समितिको

[जोहानिसबर्ग]
दिसम्बर २९, १९०६

सेवामें
दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समिति
२८, क्वीन ऐन्स चेम्बर्स, एस॰ डब्ल्यू॰
[लन्दन]

कृपया अध्यादेशके सम्बन्धमें सरकारको जगायें।

डेपुरिशन[१]

कलोनियल आफिस रेकर्ड्स : सी॰ ओ॰ २९१, खण्ड २९१, विविध।
 

२९२. सिंहावलोकन

हर वर्ष क्रिसमसके दिनोंमें हम भारतीय समाजकी स्थितिका सिंहावलोकन करते आये हैं। इस बार हमें यह कहते हुए खुशी है कि भारतीय शिष्टमण्डलके प्रयाससे ट्रान्सवाल कानूनके सम्बन्ध में प्राप्त विजयका उल्लेख हम सबसे पहले करनेमें समर्थ हुए हैं। इस कानूनको लॉर्ड एलगिनने रोक दिया है। इससे ट्रान्सवालके भारतीयोंको लाभ हुआ है। इतना ही नहीं, दक्षिण आफ्रिकाके सारे भारतीय समाजको लाभ हुआ है, और समाज एक कदम और आगे बढ़ गया है। हम यह मानते हैं कि इस अध्यादेशको रोकनेका मुख्य हेतु था कि उसके द्वारा भारतीय समाजपर निश्चित रूपसे जो कलंक लगनेवाला था वह न लगे। यानी जो कानून केवल भारतीयोंपर ही लागू हो और गोरोंपर लागू न हो सके, वैसे कानूनको बड़ी सरकार स्वीकार नहीं कर सकती। यदि हमारी यह मान्यता ठीक हो तो इस दृष्टिसे फीडडॉप अध्यादेश भी रद्द किया जाना चाहिए, जिसके द्वारा फीडडॉर्पमें भारतीयोंको जमीनका पट्टा लेनेकी मनाही है। यही स्थिति नेटाल नगरपालिका-मताधिकार विधेयककी होनी चाहिए। 'नेटाल मर्क्युरी' ने यह आपत्ति की है कि ट्रान्सवाल चूँकि अभी ताजका उपनिवेश है इसलिए बड़ी सरकार शायद वहाँ हस्तक्षेप कर सकती है। किन्तु नेटालके, जिसे स्वराज्य प्राप्त है, बीचमें बड़ी सरकारको नहीं आना चाहिए। इस तर्कमें भूल है; क्योंकि नेटालके संविधानमें एक धारा यह रखी गई है कि यदि नेटालकी संसद जातिभेदवाला कानून पास करे तो लागू किये जाने के पहले उसपर बड़ी सरकारके हस्ताक्षर होने चाहिए। यदि यह धारा केवल

  1. उपनिवेश कार्यालयके अभिलेख बताते हैं कि टान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघके मन्त्रीकी हैसियत से गांधीजी इसका सांकेतिक शब्दके रूपमें उपयोग करते थे।