उपर्युक्त विषयसे सम्बन्धित भजन[१]
हरिका मार्ग शूरवीरोंका है।
यहाँ कायरोंका काम नहीं है।
सबसे पहले तू हथेलीपर अपना सिर ले-ले;
(अहंकारका त्याग करनेके लिए तैयार हो जा)
फिर हरिका नाम ले।
जो सन्तति, सम्पत्ति, गृहणी और अहंकार
(हरिके चरणोंमें) समर्पित कर देते हैं।
वे ही हरि-भक्तिका रस भी पी-पाते हैं।
वे मोती निकालने के लिए गोताखोरोंके समान
बीच समुद्र में पड़े हुए हैं।
जो मृत्युका सामना करनेको तत्पर हैं वे ही मुक्तिरूपी
मोतियोंसे मुट्ठी भर सकते हैं
क्योंकि उन्होंने मनकी सारी दुविधाओंका निवारण कर लिया है।
जो लोग किनारेपर खड़े हुए तमाशा देख रहे हैं
उन्हें कौड़ी भी नहीं मिलती।
प्रेमका पंथ अग्निमय मार्ग है
कई तो उसे देखकर ही भाग जाते हैं;
मुक्तिका अमर सुख केवल उन्हींको मिलता है
जो इसके बीचों-बीच कूद पड़ते हैं।
निरे तमाशबीन तो झुलस जाते हैं।
जो वस्तु सिर देकर भी महँगी हो
उसे पाना कोई सहज नहीं है।
मनके सारे मैलको त्यागकर ही
मृत्युका आह्वान करनेवाले
उस परमपदको पा जाते हैं।
[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-१-१९०७
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मूल गुजराती भजन निम्नलिखित है :हरिनो मारग छे सूरानो,
नहि कायरतुं काम जोने.
परथम पहेलुं मस्तक मुकी,
वळती लेवुं नाम जोने.
सुत-वित-दारा-शीश समरपै,
ते पामे रस पीवा जोने.
सिंधु मध्ये मोती लेवा,
मांही पड्या मरजीवा जोने.
मरण आंगमे ते भरे मूठी,
दिलनी दुग्धा पामे जोने.तीरे उभा जुए तमासो,
ते कोडी नव पामे जीने.
प्रेमपंथ पावकनी ज्वाला,
भाळी पाछा भागे जोने.
मांही पडया ते महासुख माणे,
देखनारा दाझे जोने.
माथा साटे मोंघी वस्तु,
सांपडवी नहि सहेल जोने.
महापद पाम्या ते मरजीवा,
मूकी मननो मेल जोने.—काव्यदोहन