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नीतिधर्म अथवा धर्मनीति—३

है। अर्थात् नीतियुक्त काम जोर-जबरदस्ती और भयसे रहित होना चाहिए। इंग्लैंडके राजा द्वितीय रिचर्डके पास जब देहाती लोग कोवसे आँखें लाल करके जबरदस्ती कुछ हक माँगने आये तब उसने स्वयं अपने हस्ताक्षरोंसे उन्हें अधिकारपत्र लिख दिया और जब उसे ग्रामीण जनताका भय नहीं रहा तब जबरदस्ती वह अधिकारपत्र वापस ले लिया। इस कार्यमें यदि कोई यह कहे कि राजाका पहला काम नीतिपूर्ण था और दूसरा अनीतिपूर्ण तो यह भूल होगी। रिचर्डका पहला कार्य केवल भयसे किया गया था अतः उसमें नीति छू-तक नहीं गई थी।

जिस प्रकार नैतिक कार्य में भय या जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए, उसी प्रकार स्वार्थ भी नहीं होना चाहिए। ऐसा कहनेका हेतु यह नहीं है कि जिन कार्योंमें स्वार्थ निहित हो वे बेकार होते हैं; परन्तु ऐसे कार्योंको नीतियुक्त कहना नीतिको लांछित करनेके समान है। प्रामाणिकता एक अच्छी "पॉलिसी" है—इस मान्यतापर आधारित प्रामाणिकता बहुत समय तक नहीं निभ सकती। शेक्सपीयर कहता है कि "जो प्रीति लोभकी दृष्टिसे होती है वह प्रीति नहीं है।"

जिस प्रकार इस दुनियामें लाभ पाने की दृष्टिसे किया गया काम नैतिक नहीं माना जाता, ठीक उसी प्रकार परलोकमें लाभ पानेकी आशासे किया गया कार्य भी नीतिरहित है। भलाई भलाई के लिए करनी है, इस दृष्टिसे किया गया काम नीतिमय माना जायेगा। जेवियर[१] नामक एक महान सन्त हो गये हैं। उन्होंने प्रार्थना की थी कि "मेरा मन सदा स्वच्छ रहे।" उनका विश्वास था कि ईश्वर भक्ति मृत्युके बाद दिव्य भोग भोगनेके लिए नहीं, बल्कि वह तो मनुष्यका कर्तव्य है। इसलिए वे भक्ति करते थे। महान भक्तिन थेरेसा[२] अपने दाहिने हाथमें मशाल और बायें हाथमें एक जलपात्र रखना चाहती थी, सो इसलिए कि मशालके द्वारा वह स्वर्गके सुखको स्वयं जला दे और जलसे नरकके ताप को बुझा दे, जिससे मानवमात्र नरकके भय और स्वर्ग-सुखकी लालसासे मुक्त होकर ख़ुदाकी भक्ति करने लगे। इस प्रकार नीतिका पालन करना मौतपर विजय पानेवालेका काम है। मित्रोंके साथ सच्चे रहना और दुश्मनोंसे दगाबाजी करना तो कापुरुषता है। डरते-डरते भलाईके काम करनेवाले नीतिरहित ही मानें जायेंगे। हेनरी क्लैबक दयालु और सहृदय था। पर उसने अपने लोभके सामने नीतिका बलिदान कर दिया। डेनियल वेबस्टर[३] बहादुर था। उसके विचार गम्भीर थे। परन्तु एक बार पैसेके लिए वह दुर्बल हो गया था। उसने अपने एक नीच कामसे अपने सारे सत्कार्योंपर पानी फेर दिया। इससे हम देखते हैं कि मनुष्यकी नीतिकी परीक्षा करना अत्यन्त कठिन है। क्योंकि, उसके मनको हम परख नहीं सकते। हमने इस प्रकरणके आरम्भमें जो यह प्रश्न किया गया था कि नीतियुक्त काम कौनसा है, उसका जवाब भी हमें मिल चुका है। और इसीके साथ अनायास हमने यह भी देख लिया कि ऐसी नीतिका पालन किस प्रकारके लोग कर सकते हैं।

  1. सेंट फ्रांसिस ज़ेवियर (१५०६-१५५२); स्पेनके एक सन्त, जिन्होंने भारतमें और पूर्वी द्वीप समूहमें ईसाई धर्मका बहुत प्रचार किया था।
  2. सेंट थेरेसा (१५१५-८२); अपने रहस्यवादी विचारों के लिए प्रसिद्ध, स्पेनकी एक सन्त और लेखिका।
  3. डैनियल वेबस्टर (१७८२–१८५२); जिन्होंने राजनीतिज्ञ, वकील और वक्ताके रूपमें अमेरिकाके सांविधानिक विचारों और व्यवहारको अत्यधिक प्रभावित किया था।