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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असर गोरोंपर नहीं पड़ेगा, यह मानना नादानी है। जब हम बाहर निकलें तब सदैव पूरी पोशाक पहनकर निकलना चाहिए। पगड़ी, टोपी और जूतेपर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। हम मान लेते हैं कि सिरके आवरणका गन्दा रहना परिपाटीके अनुसार है। जूतोंको साफ करने का रिवाज क्वचित् ही देखने में आता है। मोजे कुछ लोग तो पहनते ही नहीं और यदि पहनते भी हैं तो इतने जीर्ण कि वे जूतोंपर दुहरे हो जाते हैं। इस स्थितिमें परिवर्तन होना ही चाहिए। इन सब बातोंकी कुंजी एक है। खान-पान, सफाई आदिके काम एकान्त स्थानमें होने चाहिए, यानी बाहर निकलनेपर हमें सदैव अच्छी स्थिति में दिखना चाहिए। इस दृष्टिसे हम अदालत या सार्वजनिक स्थानोंमें मुँह में पान, जरदा या सुपारी भरकर नहीं जा सकते।

बहीखाता

बहीखातेकी बात देखें तो अखबारों में यह शिकायत छपी है कि हमारा अंग्रेजी बहीखाता बेढंगा और बरायनाम या बनावटी है। हमें अत्यन्त लज्जाके साथ स्वीकार करना चाहिए कि इस बातमें भी कुछ सचाई है। कुछ भोले व्यापारी तो केवल वर्ष के अन्तमें बहीखाते लिखवा लेते हैं। इस प्रकार पैबन्द लगानेसे कहाँतक निभेगा? सचमुच जागनेकी आवश्यकता है। अंग्रेजीमें नियमित बहीखाता रखना कठिन नहीं है। न रखनेका मुख्य कारण आलस्य और लोभ जान पड़ता है। दोनों छोड़कर नियमित बहीखाता रखनेका रिवाज शुरू होना चाहिए।

जो दूकान, वही घर

बहुत-से व्यापारी घरोंमें ही दूकान लगाते हैं, कई गोरे भी ऐसा करते हैं। गाँवोंमें कुछ-कुछ ऐसा किये बिना नहीं चलता। जहाँ सम्भव हो, वहाँ दूकान और घर अलग और फासले पर होने चाहिए। किन्तु जहाँ निकट रखनेकी आवश्यकता हो वहाँ भी अलग तो रहना ही चाहिए, और वह भी नाम मात्रका पर्दा लगाकर धोखा देनेके विचारसे नहीं, बल्कि बिलकुल सही ढंगसे।

वचन

इन तीन बातोंपर ध्यान दिया जाये तो यह वचन दिया जा सकता है कि कुछ ही समयमें नेटालमें भारतीय व्यापारियोंकी स्थिति सुधर जायेगी। कानून नहीं बदलेगा तो वह अमल में नहीं आयेगा। कोई यह प्रश्न करेगा कि इन सारी सयानी सीखोंको निभानेसे पहले दूकानें बन्द हो जायेंगी और ताले लग जायेंगे, तो उसका उपाय क्या है? यह प्रश्न यथार्थ है।

जो जवॉमर्द हैं

नेटाल और दक्षिण आफ्रिका ऐसे भारतीयोंके लिए है जो जवाँमर्द हैं। डरपोक और कंजूसका बुरा हाल है, यह दिनोदिन सिद्ध होता जा रहा है। तब उपर्युक्त प्रश्नका उत्तर यह है कि जिसके बहीखाते अच्छे हैं, जिसकी दूकान बढ़िया और साफ-सुथरी है, जिसकी पोशाक वगैरह व्यवस्थित है और जिसका घर दूकानसे अलग और स्वच्छ है, ऐसे व्यापारीको यदि परवाना न भी मिले, और वह अपील में हार जाये तो भी उसे दुकान चालू रखनी है। और ऐसे व्यापारीकी लड़ाई ठेठ विलायत तक लड़ी जा सकती है और उसका