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'नेटाल मर्क्युरी' और भारतीय व्यापारी

सुपरिणाम प्राप्त किया जा सकता है। हिम्मतवाला व्यक्ति यह सब कर सकेगा, इतना तो निश्चित है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१-१९०७
 

३२३. 'नेटाल मर्क्युरी' और भारतीय व्यापारी

'नेटाल मर्क्युरी' ने भारतीय व्यापारियोंके बारेमें अच्छा लिखा है। उसका भावार्थ यह है कि भारतीय व्यापारीका विरोध करनेवाले लोग दम्भी हैं। अर्थात् वे बाहरसे विरोधी हैं और भीतरसे भारतीयोंके साथ व्यवहार करते हैं। 'मर्क्युरी' यह भी मानता है कि गोरे लोग यदि भारतीय व्यापारियोंके विरोधमें हों तो भारतीय व्यापारी टिक नहीं सकते। क्योंकि, उसके कथनानुसार, गोरे लोग भारतीयोंको जमीन बेचते हैं तभी तो भारतीय उसे ले सकते हैं। गोरे लोग भारतीयोंको उधार देते हैं तथा उनसे सामान लेते हैं तभी तो भारतीय व्यापार कर पाते हैं। यह दलील बहुत कुछ यथार्थ है। ऐसी ही दलीलके द्वारा शिष्टमण्डलने विलायत में लॉर्ड एलगिन तथा श्री मॉर्लेको बताया था कि गोरे लोग यदि भारतीयोंके विरुद्ध हों तो वे भले ही बहिष्कार शुरू कर दें। हम सबको सलाह देते हैं कि वे बहिष्कारकी बातका समर्थन करें। इससे सम्भव है कानून अपने-आप समाप्त हो जायेगा; क्योंकि भारतीयोंके लिए संघर्ष करनेको कई बातें हैं, और हमारा विरोध करनेवाले कानून समाप्त हो जायें तो अन्य विषयों में हम निपट लेंगे। परन्तु वह एक ही शर्तपर, कि हम लोग अपने दोषोंको दूर करें। इसके बारेमें हमने पहले अधिक लिखा है। उसे देख लें।

बहिष्कारसे किसीको डरना नहीं है, क्योंकि बहिष्कार ऐसी वस्तु हैं कि यदि गोरे उसे शुरू कर दें, तो संरक्षणके चाहे जैसे कानून बनें हम लोग बच नहीं सकते। परन्तु बहिष्कारको शिरोधार्य करना ही ठीक माना जायेगा। बॉक्सबर्ग में एक भी गोरा भारतीयके काममें नहीं आता। इसलिए यद्यपि वहाँ जानेका सबको हक है, फिर भी वहाँ कोई नहीं जा सकता। जहाँपर भारतीयोंकी बस्ती जमी हुई हैं, वहाँ यदि हम ढंगसे रहें, तो बहिष्कार टिक नहीं सकता।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१-१९०७