पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/३४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१५
जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

निर्वाचक ऐसी अधम दशामें हैं। यह तो एक नमूना मात्र है, ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं।

ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें काले लोगोंके लिए कानून

ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें काले लोगोंकी ओरसे एक गोरा नामजद किया जाये और वह उनके अधिकारोंकी रक्षा करे, ऐसा एक विधेयक सरकारी अधिकारियोंकी ओरसे 'गज़ट' में प्रकाशित हुआ था। इस कानूनका विरोध अनेक नगरपालिकाओंने किया है, ऐसे तार स्थानीय समाचारपत्रोंमें छपे हैं। सरकार जो अधिकार देना चाहती थी उनमें कोई सार नहीं था; परन्तु उतने हक मिल जानेसे भी काले लोगोंकी कुछ-न-कुछ प्रतिष्ठा बढ़ जाती है, इसी भयसे ऑरेंज रिवरकी बहादुर नगरपालिकाके गोरे सदस्योंने विरोध किया है। ऐसे लोगोंके मातहत काले लोगोंकी क्या स्थिति होगी यह सोचकर बड़ी घबड़ाहट होती है।

डॉक्टर पेरेराका लड़का

डॉक्टर पेरेराका, जो यहाँ निजी तौरसे दुभाषियेका काम करते हैं, लड़का इंग्लैंडमें पढ़ता है। वह अपने स्कूलकी परीक्षामें उत्तीर्ण हो चुका है। उसे सब विद्यार्थियोंसे अच्छा आचरण प्रमाणपत्र मिला है। कुछ ही दिनोंमें वह डॉक्टरीके अध्ययनके लिए स्काटलैंड जानेवाला है।

सर रिचर्ड सॉलोमन

सर रिचर्ड सॉलोमनका प्रिटोरियाके नगर भवनमें भाषण हुआ। भवनखचाखच भरा हुआ था। किन्तु मैं उस भाषणका पूर्ण विवरण इस बार नहीं दे सकता। अगले सप्ताह देनेका विचार[१]है। सर रिचर्डने अपनी आँखें खोली हैं। एशियाई अध्यादेशके सम्बन्ध में वे यहाँतक कह गये कि यदि उक्त अध्यादेश नई संसदमें पास हो गया तो बड़ी सरकार भी उसे स्वीकार कर लेगी। इससे ऐसा ही अनुमान किया जा सकता है कि यह कानून छः-सात महीनों में अवश्य पास हो जायेगा। यदि ऐसा हो तो सम्भव है कि भारतीयोंको जेल-महल में आनन्द करने जाना पड़ेगा। किन्तु इस सम्बन्ध में अगले सप्ताह विशेष विवेचन करूँगा।

घरमें फूट[२]

सोमवारको 'स्टार' के संवाददाताने डर्बनसे एक लम्बा तार दिया है कि डर्बनके भारतीयोंमें फूट हो गई है। कांग्रेस मुसलमानोंकी मानी जाती है। इससे उपनिवेशमें पैदा हुए, अर्थात् सभ्य भारतीय नाराज हो गये हैं और दूसरी सभा स्थापित करना चाहते हैं। इस सबके पीछे सम्भव है किसी गोरेका हाथ हो। इस तारकी भाषा ही ऐसी है मानो लेखक भारतीयोंमें लड़ाई करवानेके लिए आतुर हो रहा हो। डर्बनमें इस सारी बातकी विशेष जानकारी होगी।

एशियाई अध्यादेश

ट्रान्सवालका एशियाई अध्यादेश केवल मूर्छित हुआ है, मरा नहीं—यह बात स्थानीय समाचारपत्रोंसे स्पष्ट मालूम हो रही है। क्रूगर्सडॉर्पमें जो सभा हुई थी उसमें यह चर्चा है

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ३२८-३०।
  2. देखिए "मनगढ़न्त", और "क्या भारतीयों में फूट होगी", पृष्ठ ३०७-९।