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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि नगरपालिका संघमें इस अध्यादेशकी बातको फिरसे उठाया जाये और नई सरकारके बनते ही तुरन्त उसके पास यह प्रस्ताव पास करके भेजा जाये कि नई धारासभामें वही अध्यादेश पास किया जाना चाहिए और लॉर्ड एलगिनको उसपर हस्ताक्षर करने चाहिए। यह चर्चा केवल क्रूगर्सडॉर्प में ही हो सो बात नहीं, सारे ट्रान्सवालमें चल रही है। अतः भारतीय समाजको जागते रहने की आवश्यकता है। अध्यादेशके रद हो जानेकी खुशीमें लोग बेखवर सोते नजर आ रहे हैं; परन्तु बहुत सावधानी रखनेकी आवश्यकता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१-१९०७
 

३२५. नीतिधर्म अथवा धर्मनीति—४
क्या कोई सर्वश्रेष्ठ विधान है?

कोई काम अच्छा है या बुरा—इस सम्बन्धमें हम हमेशा अपना अभिप्राय देते रहते हैं। कुछ कामोंसे हम सन्तोष पाते हैं और कुछसे नहीं। अमुक काम अच्छा है या बुरा, यह इस बातपर निर्भर नहीं कि वह हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक। परन्तु इसकी तुलना करने में तो हम दूसरा ही दृष्टिकोण अपनाते हैं। हमारे मनमें कुछ विचार रमे रहते हैं जिनके आधारपर हम अन्य लोगोंके कामोंकी परीक्षा करते हैं। एक मनुष्यने किसी दूसरेका नुकसान किया हो और हमपर उस नुकसानका कोई असर न पड़ा हो तब भी हम उसे बुरा समझने लगते हैं। कभी-कभी नुकसान करनेवाले व्यक्तिकी ओर हमारी सहानुभूति होती है, फिर भी उसका काम बुरा है यह कहते हमें जरा भी संकोच नहीं होता। कभी-कभी हमारी राय गलत भी साबित हो जाती है। मनुष्यके हेतु हम सदा देख नहीं सकते और इससे गलत परीक्षा कर जाते हैं; फिर भी हेतुके हिसाब से परीक्षा करनेमें अड़चन नहीं होती। कुछ बुरे कामोंसे हम लाभ उठाते हैं, फिर भी हम मनमें इतना तो समझते हैं कि वे काम बुरे हैं।

यानी यह सिद्ध हो गया कि भलाई-बुराई मनुष्यके स्वार्थपर निर्भर नहीं है, और न वह मनुष्यकी इच्छाओंपर ही निर्भर है। नीति और भावनाके बीच सदैव सम्बन्ध दिखाई नहीं देता। ममताके कारण बच्चेको हम कोई विशेष वस्तु देना चाहते हैं, परन्तु यदि वह उसके लिए हानिकारक हो तो उसे देने में अनीति है, इस बातको हम समझते हैं। भावना दिखाना निःसन्देह अच्छा है, पर नीति-विचारके द्वारा उसकी मर्यादा न बँधी हो तो वह विष-रूप बन जाती है।

हम यह भी देखते हैं कि नीतिके नियम अचल हैं। मत बदलते रहते हैं परन्तु नीति नहीं बदलती। हमारी आँख खुली होनेपर हमें सूर्य दिखाई देता है और बन्द रहनेपर नहीं। यह परिवर्तन हमारी दृष्टिमें हुआ, न कि सूर्य के अस्तित्वमें। यही बात नीतिके नियमोंके सम्बन्धमें भी समझनी चाहिए। सम्भव है अज्ञानकी दशामें हम नीतिको न समझ पायें, पर ज्ञान चक्षु खुलने पर उसे समझने में हमें कठिनाई नहीं होती। मनुष्यकी दृष्टि हमेशा भलेकी ओर ही