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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस दुनियामें द्वेष और झूठकी दुहाई फिरवा दे, तो भी न्याय, भलाई और सत्य तो ईश्वरीय ही रहेंगे।[१] अतः हम यह कह सकते हैं कि नीतिका विधान सर्वोपरि और ईश्वरीय है।

ऐसे नीति-विधानका भंग कोई भी समाज या व्यक्ति अन्ततक नहीं कर सकता। कहा है कि जैसे भयंकर अन्धड़ भी आखिर चला जाता है उसी प्रकार अनैतिक व्यक्तियोंका भी नाश हो जाता है।[२]

असीरिया और बैबीलोनमें अनैतिकताका घड़ा भरते ही फूट गया, रोमने जब अनैतिकताका मार्ग लिया तो महापुरुष उसे नहीं बचा सके। यूनानी प्रजा बहुत होशियार थी, परन्तु उसकी वह होशियारी अनीतिको कायम न रख सकी। फांसका विद्रोह भी अनीतिके प्रतिकारमें हुआ। इसी तरह अमेरिकामें बैंडल फिलिप्स कहते थे कि अनीतिको राजगद्दीपर अधिष्ठित कर दिया जाये तो भी वह नहीं टिक सकेगी। नीतिके ऐसे अद्भुत विधानका जो व्यक्ति पालन करता है उसका उत्कर्ष होता है, जो कुटुम्ब पालन करते हैं वे बने रह सकते हैं और जिन समाजों में पालन किया जाता है वे विकसित होते हैं। जो प्रजा इस उत्तम विधानका पालन करती है वह सुख, स्वतन्त्रता और शान्तिका उपभोग करती है।

उपर्युक्त विषयसे सम्बन्धित भजन

हे मन, तू 'तूही तूही' बोलता है। यह तेरा शरीर स्वप्न के समान है। यह अचानक उड़ जायेगा जैसे आगमें लकड़ी खतम हो जाती है।

ओसका पानी पल भरमें उड़ जायेगा जैसे कागजपर का पानी सूख जाता है। यह काया-रूपी बगीचा मुरझा जायेगा और सब धूलधानी हो जायेगा। फिर तू पछतायेगा कि तूने व्यर्थ 'मेरा-मेरा' किया।

यह तेरी काया काँचके घड़े के समान है। इसे नष्ट होते देर न लगेगी। जीव और कायाके बीच सम्बन्ध ही कितना है। वह उसे जंगल में छोड़कर चला जायेगा। तू व्यर्थ घमण्ड करके फिरता रहता है। अचानक अंधेरा हो जायेगा।

जिसका जन्म हुआ है उसको जाना है। बचने की कोई सम्भावना नहीं है। देव, गंधर्व, राक्षस और मनुष्य सबको काल निगल जायेगा। तूने आशाका महल तो ऊँचा बना रखा है लेकिन बुनियाद सब कच्ची है।

  1. . . .justice, good, and truth were still
    Divine, if, by some demon's will,
    Hatred and wrong had been proclaimed
    Law through the worlds, and right misnamed.

    Christmas Eve, XVII.

  2. As the whirlwind passeth, so is the wicked no more; but the righteous is an everlasting foundation. Proverbs, X.25.