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राष्ट्रका निर्माण कैसे हो?


इस चंचल चित्तके साथ सँभलकर चल और हरिके नामका सहारा ले। तू जितना परमार्थं करेगा वही साथ जानेवाला है। इसलिए विश्रामकी व्यवस्था कर ले। 'धीरा' कवि कहता है कि इस पृथ्वीपर कोई नहीं रहेगा।[१]

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-१-१९०७
 

३२६. राष्ट्रका निर्माण कैसे हो?

[जनवरी २८, १९०७ के पूर्व]

'नेशन बिल्डिंग' अथवा उपर्युक्त शीर्षकसे श्रीमती एनी बेसेंटने 'इंडियन रिव्यू' में जो एक लेख लिखा है वह सबके लिए समझने योग्य है। भारतमें आजकल एक राष्ट्र बनकर स्थिति सुधारनेकी उमंग सभी कौमों में दिखाई दे रही है। इसलिए भी प्रसिद्ध लोग अपने विचार प्रकट किया करते हैं। श्रीमती बेसेंट थियोसॉफिकल सोसाइटीकी अध्यक्ष हैं। वे आधा वर्ष विलायतमें और आधा भारतमें बिताया करती हैं। वे दुनियामें उत्तम भाषण देनेवाली मानी जाती हैं। उनके लेख भी बहुत ही पढ़ने योग्य होते हैं। उनका उपर्युक्त शीर्षकका लेख, जान पड़ता है, बहुत ही विचारपूर्वक लिखा गया है। इसलिए उसका अनुवाद नीचे दिया जाता है।[२]

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-२-१९०७
  1. मूल गुजराती भजन निम्नलिखित है :

    मन तुही तुंही बोले रे
    आ सुपना जेवुं तन तारूं
    अचानक उड़ी जशे रे
    जेम देवता मां दारू।
    झाकळ जळ पळमां बळी जाशे
    जेम कागळने पाणी
    कायावाड़ी तारी एम करमाशे
    थई जाशे धुलधाणी
    पाछळथी पस्ताशे रे
    मिथ्या करी मारू मारूं।
    काचनो कुंपो काया तारी
    वणसता न लागे वार;
    जीव कायाने सगाई केटली
    मुकी चाले वन माझार

    फोगट फूल्यां फरवु रे
    ओचिन्तु थाशे अंधारूं।
    जायुं ते तो सूखे जावानु
    ऊगरवानी उधारो।
    देव, गंधर्व, राक्षस ने माणस
    सऊने मरणनो मारो;
    आशानो महेल ऊँची रे
    निचुं आ काचुं कारभारूं।
    चंचल चितमां चेतीने चालो
    झालो हरीनुं नाम;
    परमारथ जे हाये ते साये
    करो रहेवानी विश्राम
    धीरो धराधरीथी रे
    कोई नथी रहेनारू।

    —काव्यदोहन

  2. इसके बाद श्रीमती बेसेंटके लेखका अनुवाद दिया गया था।