३२९. पत्र : छगनलाल गांधीको
[जोहानिसबर्ग]
जनवरी २९, १९०७
चि॰ छगनलाल,
तुम्हारा पत्र मिला। हिन्दी-तमिलके बारेमें श्री वेस्टको लिखा है, सो पढ़ लेना।
कुमारी वेस्ट के बाबत समझ गया। योग्य हो सो करना। वह उदाहरण लेने जैसा नहीं है।
यहाँके कार्यालय में बहुत नुकसान हुआ दीख पड़ता है। इसलिए मुझे घड़ी-भर भी फुरसत नहीं रहती।
चि॰ कल्याणदासको[१] आज न्यूकैसिलमें होना चाहिए। उसके हाथमें दर्द उठा है, फिर भी कार्यक्रम पूरा करना चाहता है। इसलिए मैंने तार किया है कि फिलहाल बाकी जगह जाना मुल्तवी रखे। तारका जवाब नहीं आया। उसके हाथकी पूरी खबरदारी रखना।
मेढ़को छुट्टी देनेके बाबत लिख चुका हूँ।
आज अमीरका वृत्तान्त पूरा भेज रहा हूँ—पृष्ठ ४४ से ७३ तक। पिछले पृष्ठोंसे इनका सम्बन्ध है। शीर्षक ठीकसे देना।
मोहनदासके आशीर्वाद
- गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४६९२) से।
३३०. पत्र : छगनलाल गांधीको
[जोहानिसबर्ग]
जनवरी २९, १९०७
चि॰ छगनलाल,
तुम्हारा पत्र मिला।
देसाईका पत्र इसके साथ भेज रहा हूँ। यदि मुतु न आया हो और तुम नाथालालको जानते हो तथा वह रखने लायक जान पड़े, तो देसाईको लिखना। मैंने उसे लिखा है कि तुम्हें लिखे।
तुम्हारे जाने के पहले एक आदमी जरूर तैयार हो जाना चाहिए। यदि मगनलाल[२] तैयार हो जाये तो ठीक होगा।
मैंने तुम्हारे बैरिस्टर होने की बात सोची है। इसके सिवाय इस विषय में तुम्हें और क्या सूझता है, सो लिखना। बैरिस्टरीमें एक बात यह आड़े आती है कि उसमें १५० पौंड-