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मदनजीतका उत्साह

प्रबन्ध करना चाहिये। इसके बाद जो बचे, उसे हम शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि की उन्नति के काममें लायें। ऐसा करते हुए हम सबको अधिक शिक्षण लेने की जरूरत है। इसलिए जिसको सबसे अधिक दृढ़ मानता हूँ उसको विलायत भेजने के विचारपर आता हूँ। जो जायेंगे वे ऐसे दृढ़ निश्चयी ही होने चाहिए कि जो अपनी शिक्षासे अपने लिए एक भी पैसा न लें। वरन् उसका सारा लाभ प्रेसको दें और प्रेससे उन्हें जो भी मिले वहीं वे खायें और लें। भारतीयोंमें इस योग्य फिलहाल में तुम्हींको देखता हूँ। मैं मानता हूँ कि तुम रहस्य समझ सकते हो; और मेरी भावनाओंका उत्तराधिकार फिलहाल तुम्हीं ले सकते हो, ऐसा लगता है। पोलक और वेस्ट बहुत जानते-समझते हैं। वे कुछ ऐसी बातें समझते हैं, जो तुम नहीं समझते। फिर भी ऐसा लगता है कि कुल मिलाकर तुम विशेष समझते हो। अपनी पूंजी और धरोहर अन्ततोगत्वा पैसा नहीं है, बल्कि अपना धैर्य, आस्था, सत्य और कुशलता है। इसलिए यदि तुम विलायत जाओ, तुम्हारी बुद्धि निर्मल रहे एवं तुम स्वस्थ और मनसे समर्थ बनकर वापस आओ, तो उस हद तक अपनी धरोहरमें वृद्धि ही मानी जायेगी। अधिक नहीं लिख सकता, क्योंकि फिर लोगोंका आना-जाना शुरू हो गया है।

[मोहनदासके आशीर्वाद]

गांधीजी स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४६९०) से।
 

३२८. मदनजीतका उत्साह

[जनवरी २९, १९०७ के पूर्व]

श्री मदनजीतने रंगून—ब्रह्मदेश—से 'युनाइटेड बर्मा' नामक अंग्रेजी अखबार निकालना शुरू किया है। उसके आरम्भिक अंक हमें मिले हैं। अखबार शुरू करने में श्री मदनजीतका उद्देश्य ब्रह्मदेशकी प्रजाको संगठित करना तथा उसे वहाँकी सरकारसे न्याय प्राप्त कराना है। इसीके साथ एक उद्देश्य यह है कि ब्रह्मदेशवासी भी कांग्रेस में भाग ले सकें। श्री मदनजीतका यह साहस जबरदस्त है। उसके लिए सभी मंगल कामना कर सकते हैं। उस अखबार में अंग्रेजों और भारतीयोंके विज्ञापन बहुत दिखाई देते हैं। इससे जान पड़ता है कि उसे काफी प्रोत्साहन मिल रहा है। उसका पता है—नं॰ २९, २७ स्ट्रीट रंगून। चन्दा ६ रुपये वार्षिक है। फुटकल प्रतिका मूल्य तीन आने है। श्री मदनजीत स्वयं उसके सम्पादकका काम करते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-२-१९०७

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