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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या मैं पूछ सकता हूँ, सो कैसे?

जैसे यह मान लिया गया है कि ट्रान्सवालमें अनधिकृत ब्रिटिश भारतीयोंकी बड़ी बाढ़ आ रही है और इसे ब्रिटिश भारतीय समाज वास्तव में बढ़ावा दे रहा है।

तब क्या वे धारणाएँ गलत हैं?

हाँ, यदि दोनों बातें जरा भी सच होतीं तो इस कानूनका, जो, कुछ भी कहिये, घबराहटमें पास किया गया है, कोई औचित्य होता; किन्तु ब्रिटिश भारतीय समाजने इस अनधिकृत बाढ़के आरोपका बार-बार खण्डन किया है।

तब क्या मैं यह मान लूँ कि आप उनके खण्डनसे सहमत हैं, श्री गांधी?

अवश्य, मैं दावा करता हूँ कि मुझे खुद अनुमतिपत्र कार्यालयकी कार्यप्रणालीका अच्छा-खासा अनुभव है। और उसके आधारपर मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि कुछ इक्के-दुक्के मामलोंको छोड़कर ट्रान्सवालमें अनधिकृत प्रवेश कतई नहीं हो रहा है। और उनसे वर्तमान शान्ति-रक्षा अध्यादेश और १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत बखूबी निबटा जा सकता है।

कानूनकी वर्तमान सूरत

जिस-किसी भारतीयने बिना अनुमतिपत्रके या झूठे अनुमतिपत्रके द्वारा उपनिवेशमें प्रवेश करनेका प्रयत्न किया, उसपर सचमुच सफलतापूर्वक मुकदमा चलाया जा चुका है। अक्सर ऐसे लोग उनके अँगूठोंकी निशानियाँ और उनके द्वारा पेश किये गये अनुमतिपत्रों और पंजीयन प्रमाणपत्रोंपर अंकित अंगूठोंकी निशानियोंको मिलाकर पकड़े जा सकते हैं।

यदि वे न मिलें तो क्या मुकदमा चलाया जाता है?

हाँ, यदि अंगूठोंकी निशानियाँ न मिलें तो ऐसे दस्तावेजोंके अनधिकृत मालिकोंको बहुत ही कड़ा दण्ड दिया जा सकता है। यदि उपनिवेशमें कोई भारतीय बिना अनुमतिपत्रके मिल जाये तो फौरी हिदायत मिलते ही उसे जेलके डरसे तुरन्त ट्रान्सवाल छोड़ना पड़ता है, या यह सिद्ध करना पड़ता है कि वह शान्ति-रक्षा अध्यादेशमें बताई गई प्रतिबन्धमुक्त जातियोंमें से है। अतः आप देखेंगे कि वर्तमान व्यवस्था सर्वथा सम्पूर्ण है। इसलिए पिछले सोमवारको जब मैंने 'टाइम्स' में यह लम्बा तार पढ़ा कि ट्रान्सवालमें अनधिकृत भारतीयों की बाढ़ आ रही है और बहुत जालसाजी हो रही है जिसका पता लगाना कठिन है, तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ।

मेरा खयाल है, आपको शिकायत है कि वर्तमान कानूनोंके अन्तर्गत भी कुछ मामलोंमें अन्याय किया गया है?

बेशक। वर्तमान कानूनोंके अन्तर्गत भी बहुत ही भयानक अन्याय किया गया है; जैसे भारतीय महिला पूनियाका मामला[१], जिसके प्रति सारे ट्रान्सवालमें सहानुभूति जाग गई थी। उस मामलेमें, जैसा कि अब सबको मालूम है, एक भारतीय महिलाको अपने पतिसे जबरदस्ती अलग कर दिया गया था और पतिके पास सही अनुमतिपत्र था।

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४४४-४५ और ४५०