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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

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पुसा नहीं सकता। इसलिए ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे परिषदको लिखा गया है[१]। इन नियमोंके और भी उपनियम हैं जिनमें दिखाया गया है कि परवानेकी अर्जी किस प्रकार लिखी जाये और मकान किस प्रकार साफ रखा जाये?

तुर्की और जर्मनी

यहाँके 'रैंड डेली मेल' में तार छपा है कि इन दोनों देशोंके बीच फिर झगड़ेका कारण उपस्थित हो गया है। किन्तु वह 'रायटर' का तार नहीं है इसलिए वह आपके अखबारों में नहीं आ सकता। इसलिए उसका अनुवाद यहाँ दे रहा हूँ :

मालूम होता है कि गुप्तचर विभागके वरिष्ठ अधिकारी फेहिम पाशाने जर्मनीके एक लकड़ीसे भरे हुए जहाजको पकड़ लिया। इसका कारण यह था कि जर्मन कम्पनीने, जिसका कि वह जहाज था, कर्मचारियोंको रिश्वत देनेसे इनकार कर दिया। पाशाके कार्यकी जर्मन राजदूतको सूचना दी गई। और राजदूतने सैनिक चौकी ('पोस्ट') से इसकी शिकायत की। इसके अतिरिक्त उसने यह भी कहा कि यदि पाशा तुरन्त ही जहाज वापस नहीं देगा तो जर्मन सेनाकी सहायतासे उसे वापस ले लिया जायेगा; क्योंकि जर्मन लोगोंके हकोंपर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। इस धमकीका जैसा चाहिए था, वैसा ही प्रभाव पड़ा। गुप्तचर विभागके वरिष्ठ अधिकारीने तुरन्त ही जर्मन कम्पनीको सूचना दी कि वह जहाज छोड़ दिया गया है। अब राजदूतने सैनिक चौकी ('पोस्ट') को पत्र लिखा है और कहा है कि फेहिम पाशा रिश्वतखोर, लुटेरा और सर्वविदित चोर है। वहीं माननीय सुलतानके नामको बट्टा लगाता है और ऑटोमन सरकारको विदेशियोंकी नजरोंमें गिराता है। उसने यह भी माँग की है कि कानूनके अनुसार उसको अपदस्थ करके निर्वासित किया जाये या आजन्म कारावास दिया जाये।
[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-२-१९०७
 

३४९. 'ऐडवर्टाइज़र' की पराजय[२]

'नेटाल ऐडवर्टाइज़र के सम्पादकसे भारतीय नेता मिले। उसका परिणाम अच्छा हुआ है। ‘नेटाल ऐडवर्टाइज़र' ने बहुत बड़ा लेख लिखा है। उसमें उन्होंने हमारी लिखी हुई बातमें, श्री गांधी और श्री अलीके काममें, तथा नेताओं द्वारा कहे गये तथ्योंमें भेद करते हुए कहा है कि सर लेपेल ग्रिफिन जैसे व्यक्ति भी भारतीयोंको सारे अधिकार देना चाहते हैं और कहते

  1. देखिए "पत्र : टाउन क्लार्कको", पृष्ठ ३३८-३९।
  2. नेटाल ऐडवर्टाइज़रने अपने एक सम्पादकीय में ब्रिटिश भारतीय शिष्टमण्डलके प्रति साम्राज्यीय सरकारकी प्रतिक्रियाकी आलोचना की थी। इस बातको लेकर डर्बनके प्रमुख भारतीयोंका एक शिष्टमण्डल ऐडवर्टाइज़रके सम्पादकसे मिला। परिणामस्वरूप ('ए टू ऐजीटेशन ऐंड ए फॉल्स') 'खरा और खोटा आन्दोलन' शीर्षकसे एक मैत्रीपूर्ण लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें ऐडवर्टाइज़रने इस प्रकार लिखा; 'कुछ भी हो, हमें एक दूसरेको समझने की चेष्टा करनी चाहिए।'