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३५३. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
नई संसद

ट्रान्सवालकी नई संसदकी धूमधाम चल रही है। नई संसदमें ५८ सदस्य होंगे। उनमें ३१ जोहानिसबर्ग के हैं। शनिवार तारीख ९ को उम्मीदवारोंके नाम दर्ज कर लिये गये हैं। 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकोंके पास यह अखबार १६ या १८ तक पहुँचेगा। तारीख २०, यानी बुधवारको सदस्योंका चुनाव होगा। तारीख २१ को चुनावका परिणाम घोषित हो जायेगा। इसलिए आशा है कि इसके बादके अंक में पाठकोंको सफल उम्मीदवारोंके नाम मालूम हो जायेंगे।

विभिन्न दल

कुल मिलाकर पाँच पक्ष हैं। अर्थात—प्रगतिशील (खानोंवाले), हैटफोक (डच), राष्ट्रवादी (नेशनलिस्ट), स्वतन्त्र (इंडिपेन्डेन्ट), मजदूर (लेबर)। इनमें वास्तविक पक्ष दो ही हैं। प्रगतिशील और हैटफोकके नामोंसे यदि कोई डर जाये तो कह सकते हैं कि उसके लिए राष्ट्रवादी दल खड़ा हुआ है। अधिकतर यह माना जाता है कि हैटफोक और राष्ट्रवादी दलोंकी विजय होगी और अधिकतर सदस्य इन दोनोंके आयेंगे। प्रगतिशील दलकी ओर बहुतेरे लोगोंकी दृष्टि है। हैटफोकके नेता जनरल बोथा और जनरल स्मट्स हैं; राष्ट्रवादियोंके सर रिचर्ड सॉलोमन और वाईवर्ग हैं। प्रगतिशील पक्षमें सर पर्सी फिट्ज़पैट्रिक, सर जॉर्ज फेरार, श्री हॉस्केन आदि हैं।

वास्तविक द्वन्द्वयुद्ध सर रिचर्ड सॉलोमन तथा सर पर्सी फिट्ज़ पैट्रिकके बीच चल रहा है। वे दोनों प्रिटोरियासे उम्मीदवार हैं। दोनोंमें से कौन जीतेगा निश्चित नहीं कहा जा सकता। सर रिचर्डके विचार चीनी और काफिर लोगोंके सम्बन्धमें बदलते रहते हैं, इसलिए बहुतेरे लोग उनकी ओर तिरस्कारकी दृष्टिसे देखते हैं। वे चीनियोंको लाने के लिए तैयार हो गये थे। कहते हैं कि उनके विचार फिर बदले हैं। काफिरोंको उचित अधिकार मिलना चाहिए, ये ऐसी बातें करते थे। अब कहते हैं कि काफिरोंके सम्बन्ध में दूसरे सदस्य जो कुछ करना चाहेंगे वे उससे सहमत होंगे।

देखनेपर मालूम होता है कि हैटफोकके ३५ उम्मीदवार हैं, प्रगतिशील दलके २९, स्वतन्त्र ३२, राष्ट्रवादी दलके १५ और मजदूर वर्गके १२ हैं। इनमें से हैटफोकके ५ उम्मीदवार तो चुने जा चुके हैं; क्योंकि उनके विरुद्ध उनके शहरमें कोई उम्मीदवार नहीं था । इसलिए वहाँ चुनावकी आवश्यकता नहीं रही।

चाहे जिस पक्षका जोर बढ़े, भारतीय समाजके लिए लाभ-हानि जैसी कोई बात नहीं है। दोनों ही पक्ष भारतीयोंके विरुद्ध अपनी राय जाहिर कर चुके हैं।

अनुमतिपत्र कार्यालय

'ट्रान्सवाल ऐडवर्टाइज़र' में एक लेख आया है। उससे स्पष्ट जाहिर हो जाता है कि वह अनुमतिपत्र कार्यालयकी शरारतसे प्रकाशित हुआ है। उसमें लिखा है कि भारतीय समाज अनुमतिपत्र कार्यालयको बहुत तकलीफ देता है। अध्यादेशके पास न होनेसे अनुमति-पत्र-कार्यालयका काम बढ़ गया है। सैकड़ों जगहोंसे भारतीय बिना अनुमतिपत्रके आते हैं और वे लोग लड़कोंको बिना अनुमतिपत्रके लाकर उनसे दूकानोंमें काम करवाते हैं। इसके अलावा